औरत के हक में | Aurat Ke Hak Men

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऊरत दो एए में 25 हि अपने शरीर को अशंसित संघोग से बदाने झा अधिरार भी उसे रीएत नहीं धा। मैत्रेयदी संहिता, 3/675, 4/6, 4/7/4, 10/1021 तैत्तीय संत्या, ६०5०8/2)1 नागी के तिए शिक्षा नहीं, घन नहीं यों तक मि अपना शरीर भी भागी के तिए नरीं है। नायी वा अपना झुछ भी पार्दिय या अपर्दिय नरीं हो सम्ता। भारी यो निर्य या कंगात बना देने के लिए कई मंत्र बने हैं और तोग उन्हें बड़े उत्साह के शाय उच्दरित करते हैं। मैत्रेयथी संहिता” में कहा गया है क्लि नारी अश्ुम है (3/8/3)। यत करते हुए फिसी कुते, शूद्ध और नारी की तरफु मत देशों (शतपरय द्वाद्मय, $/2/4/6)॥ आतिष्य-उत्तर में, युद्ध में, यत्ध में, उपहार, दान और दक्षियां में गायनार्ण, अनान-रध-नगन-अश्य के राय-साथ मारी भी दी छाती थी। नारी यो भोग्पररतु रापझा जाता था। इसतिए यहाँ गाय और पोड़े के साय-नगय मारी का उल्तेशा करने में योई नहीं दिपक्ियाता। झुता, शृद्ठ, नागी राभी अछूत हैं, सभी समाज के उसपीड़ित, पृ्धित यु हैं। कन्या अभिश्यर है (ऐतरेय ब्राद्यम, 6/5/7/1$)। दर्सीतिए गर्मरती नारी झोे तिए एड झझुणापूर्ण अनुष्टान है-'पुंसरना। इसमें मनौती थी छाती है दि गर्भ पी संतान पुत्र ही हो। सारी विध्यायारिणी, दुर्भाग्यस्यस्पिणी, सुछ और पृतन्ीड़ा वी तरह एक यर्जन भाग है (मेत्रेणणी संटिता, 1/10/11, 3/6/5)1 इसीलिए रायगुगसस्घल्त श्रेष्ठ नारी भी अपम पुरुष से दीन है (तैत्ततीय राध्ता 6/5/8/2)1 परतुतः इन सारी बातों फा सारांश यही है कि नारी नीय है, नादी अयम है, नारी मजुष्य ही नहीं है। 'रातपध ब्राह्मण! में है कि पली पति यो याद ही छाद्ेगी ययोडि *मुकक्‍्तवाच्छि््ट ववैव ददाद* अर्थात्‌ छाना खाते झे याद जश्न पली यो देगे (गृद्ययूत, 1/4/11)। शास्त्र में फटे-पुराने कपड़े दास (नौफ़र) को देने एएं छूडन रदी यो देने या्र रिघान किया गया है। घर फे झुत्ते-वित्ती और नायी एड री तरह ये जीव हैं इसीतिए जूउन देकर ही उनका पान झिदा जाता है। आपलम्य धर्मसू (1/9/25/4६) में कहा गया हैं कि याती दिड्लिया, गिद्ध, नेरता, छ्दंशर और छझुते पी इत्या करने पर जो प्रायरिपत करना पड़ता है, नायी रल्या एवं एंड झा झरने पर भी यही प्रायशियत कसा पता है। यानी फेय्ल एम दित था कप्णशय श1र पालन करना पढ़ेगा। गिद्ध, नैयता, छ्ूंदर, कुता, शूद्ध और नागी के बीप शारशों में बरेई अन्तर नहीं माता और योई भेदमाय नहीं रछा। इसतिए राषाज ने भी नरीं रणा। वैदिश घारत पें नारी यो मनुष्य के स्प में स्दीरृति नहीं दी गई थी। ईसा पूर्व मारी श्ी प्ये शापाज ने मारी ऐो दितना असम्मातित झिया, तीन हज़ार बरसे में आज भी, पर्णधात इसी का रापाज विल्‍्तनपिन्‍्त तरह से, मिन्त-फ्िन्न दशा में, नारी ये एड समान अप्त्पानित यरता एता छा रहा है।




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