अपभ्रंश | Apabhransh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द एक अपभ्र श॒ कोश की प्रतीक्षा बहुत दिनों मे थी । आज डॉ० नरेश कुमार के “अपभ्र श-हिंदी-कोंश' को देखकर प्रसन्नता हुई। कोश कैसा वन पड़ा है, यह तो उपयोग की प्रक्रिया से गुजरने पर ही ठीक-ठीक पता चलेगा । कितु उड़ती नजर से देखने से इतना तो आभास हो ही जाता है कि कोशकार ने शब्द-संग्रह का कार्य केवल कोश-ग्रंथों से ही नहीं किया है, बल्कि स्वयं अपभ्रश के काव्य- ग्रंथों का भी उसने आलोडन-विलोड़न किया है । संभव है, खोजने पर कुछु-एक अभीष्ट अपश्रश शब्द इस कोश में न मिलें, लेकिन इतने से ही यह प्रयास व्यर्थ सिद्ध नहीं होता । इस दृष्टि से कोई भी शब्दकोश पूर्ण नहीं कहा जा सकता । अपशन्नश शब्द के विद्यार्थी अभी तक श्री हरगोविद दांस त्रिकमचन्द शेठ के 'पाइअ-सद्द-महण्णवो” से ही काम चलाया करते थे, क्योंकि प्राकृत के बहुत-से शब्द अपभ्र श में भी ज्यों के त्यों स्वीकार कर लिए गए थे, फिर भी अपभ्रश के फाव्य-प्रंथों में ऐसे अनेक शब्द मिलते रहते हैं जो उक्त कोश में दुष्प्राप्प हैं। इस आवश्यकता की पूर्ति एक स्वतंत्र अपृभ्न श कोश ही कर सकता है--ऐसा कोश जो अपभ्रश काव्य-प्रंथों में प्रयुक्त शब्दों के आधार पर निर्मित हो | डॉ० नरेश- कुमार का प्रयास इसी दिशा में है, इसलिए स्वागत योग्य है । अपभ्र श-कोश की सबसे वड़ी समस्या अर्थ॑-निर्धारण की दै । ध्वनि-परिवर्तन के विविध नियमों के कारण संस्कृत के शब्द अपन्नंश में ऐसा रूप ग्रहण कर लेते हैं कि प्रायः एक ही अपभ्र श शब्द अनेक संस्कृत शब्दों का वांचक होता है | ऐसी स्थिति में अत्यंत सावधानी अपेक्षित है । मुझे यह देखकर संतोप हुआ कि इस कोश में ऐसी सावधानी वरती गई है । ऐसे स्थलों पर मूल ग्रंथ से प्रयोग के उदा- हरण उद्धृत करके सहो-गलत्त के निर्णय को सुविधा भी प्रदान को गई है। सच पूछिए तो डॉ> नरेश कुमार ने वह कार्य किया है जो प्रायः किसी संस्था के ही वृत्ते का है । इस अध्यवसाथ के सम्मुख नतमस्तक होने के अतिरिक्त वह व्यक्ति और क्‍या कर सकता है जो पैंतीस वर्ष पहले अपभ्रश पर एक छोटी- सी पुस्तक लिखने के वाद विद्या की उस ड्यौढ़ी से दूर चला आया। फिर भी ग्रंथकार के अनुरोध पर यदि आशंसा के दो शब्द कहने का साहस जुटा रहा हूं तो इसलिए कि यह मेरा पुराना प्रेम ही नहीं, वल्कि प्रथम प्रेम है। इस समय तो मन में यही भाव है कि जो मुझसे न हो सका उसे करके दिखाने वाला कोई तो ' आगे आया ! 'क्रिया केवलमुत्तरम्‌ । नामवर सिंह भारतीय भापा केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, ३०-११-१६८६ नई दिल्‍ली-११०० ६७




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