महाभारत (शांति पर्व) | Mahabharat (Shantiparv)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
742
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६९७
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तद्भावयुक्तों ृष्याणि जीवन्पुनरुपाजयेत्
यास्तु काशबललद्यागाच्छक्यास्तार तुमापदः
कस्तत्राधिकमात्मान सत्यजदथधमवित्
अवराधान जुगुप्सत का सपत्नधन दया |
न त्वेवात्मा प्रदातव्य। शक्थे सति कर्थ च न | ८ ॥
युधिष्ठिर उबाच- आशभ्यन्तरे प्रकुपिते बाह्य चोपनिपीडिते |
क्षीण कोश श्रुत्रे मन्चे कि कायम्चशिष्यते
भाष्य उवाच-- क्षिप्र वा सन्धिकासः स्थाश्क्षिप्र वा तीक्ष्मपिक्रमः ।
तदापनयन क्षिप्रमत।वत्सांपरायिकपत
अनुरक्तेन चेष्टन हृष्टेन जगतीपतिः |
अल्पनापि हि सैन्येद महीं जपति भूमिप) ॥ ११॥
हतो वा दिवमारोहेद्धत्वा वा क्षितिमावसेत् |
युद्ध हि सत्यजन्पधाणान् शक्रस्पति सलोकताम) १२ ॥
सचलोकागन कूत्वा झुदुत्व॑ गन्तुमेच च |
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कु
७.
करने सम्मत होवे, अथवा राजधानी | किले तथा राज्य आदि शचुसे आक्रा-
परित्याग फरके द्रव्य सम्बय दानते भी
आपदसे पार होने । यदि राजशुणणप्त
युक्त होकर जीवित रहे, तो द्रव्य आदि
फिर प्राप्त कर सकेगा; घन और सेना
परित्याग करनेते यदि सब आपद दूर
हो, तो कोन धरम अथको जाननेबाला
राजा उस विषय आत्मदान किया
करता है! अन्तापुरपें रहनेवाली स्लियों
को रक्षा करे, वे यदि शच॒के अधिकारमें
हुई हा, तो उस विपयर्म दया करनकी
आवश्यकता नहीं है, सामथ्य रहते किसी
प्रकार भी आत्म समपंण करना यो्य
| नहीं है | (४-८)
शाधाहर बाल, सेंपक आदि कापत,
च्ध्ध्ट्ष्ह्ह्ष €€68९6४४६४९६८६६६६६४६६६६६७€६६६०७
महाभारत ।
15६1
1७9॥
॥ ९॥
1 १० ॥|
न्त, खजाना खालि, और मन्त्रणा
प्रकाशित होनेपर अन्त्म दया करना
उचित है | (९)
भीष्म बोले, शच घमोत्मा होनेपर
शांध्र हा उसके सह सन्धिकी इच्छा
करे, ऐसा होनेते शीघ्र ही शद्भुको दूर
किया जा सकता है, अथवा धर्म युद्ध
शणको लाग करके परलोकर्यं गमन
फरना ही करयाणकारी है। थोड़ी
सत्र होनेपर भी यदि वह अनुरक्त,
आभ्रप्नत आर हष॑युक्त हो, तो पृथ्वी-
पाति राजा उस ही से महीमण्डल जय
कर सकता है। जो युद्ध प्राणत्यागते
हैं, पे इन्द्रढोक पाते हैं। सव लोकौंगें
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[ २ आपद्धर्मप्व
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