बृहद्द्रव्यसंग्रह | Brihaddravya Sangrah

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Brihaddravya Sangrah by नेमिचन्द्र स्वामी - Nemichandra Swami

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अच्ुद्धपाठ शद्धपाठ पृष्ठ तह्या या काय तहा कायाय ६९, पुग्गलकारण जीवा खधा खलु काल कारणदु”'पुग्गलकरणा जीवा खधा सलु कालकरणादु” ६ १ धर्मंद्रव्यके धर्मद्रव्यकों गतिका सहकारी कारण ६२ प्रधमोन्‍्तराधिकार: प्रथमाधिकारः ड़ द्रव्यप्रमाणसे द्रव्याश्नय प्रसाणसख्यासे ९५ द्श्हैं कहे दूँ की मिद्र हि यपचेसे मिद्रेह्दि अपवेसे है “-+जनित पर्यायान्तर परिणार्ति --जनितपर्यायान्तरपरिणतिं जा बुद्धिदरसी विवरीउ वक्ष- बुद्धदरसी विवरीओ वभ- ७६ इंदिपणिहाय इदिय णिद्दा य भर मडयारीण भडयारीण ८० “भुणस्थानो मे गुणस्थाने में ८४ अभेद हो तो अभेद वा भेद हो तो ८५ आचार मूलाचार ८८ सपूर्व भपूर्वे ग़हीत, अगृहीत ९५० यहापर जहापर थे “अत्थि “सति ९५२ भावकलकसुपउरा णिगोदवा्स न सुचति। भावकलइ्ड सुपठरा णिगोद्वा्स ण मुचति । ,, तथान्यत्वालप्रेक्षां अधान्यत्वानुप्रेक्षा ९४ किंतु और ९६ जे आधे ९९ णिस्सीरदो णिस्सरिदो १०२ --परयेन्तमा- “-पर्यन्तम- १०३ लोभोके लोमोंके १०४ सत्तरिलाखकोडि छप्पनहजार ये वासगणनासे सत्तरिलास छप्पनहजारकोडिवर्ष जितना ११४ सीदिं सीदी ११७ चन्द्रस्याचन्द्रेण चन्द्रस्य चन्द्रेण हर ११८ -एकेकिदिय- एक्रेकिद्य- १२३ समुदायसे ६३ समुदायसे ऋजुआदि नासके धारक ६३ ,, विमान है ये विमान हैं वे, ये १२४ सनाओ य तिलेस्सा इदियवसदाय सण्णाओ य विलेल्सा इंदियवसदा य ५ अट्टरृद्मणि । नाणे च दुष्प उत्तं । क्षत्तरद्माणि ।णाण च दुष्पउत्तं । कक निल्यईनिगोदवनस्पतिम निल्ननिगोदमें १२७ चेति वेति १५९ संज्प्रणदुरगउ अविहारो सपझ्मणदुग्गकय विद्ारों का जो आत्मझूप जो निजशद्ध आत्मखरूप . . मु छपवा व्यवहार अथवा उसके साधक व्यवहार १३० सैणइया हँति बत्ती वेणइया हुति बत्तीसा १३१ ३ ऊ २७-भ ८ ३१ १८ १७४ श्र ११-१६




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