अनुतरोपपातिक दशा सूत्रं | Anutaropapatik Dasha Sutram

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Annutroppatik Dasha Sutram by आत्माराज जी महाराज - Atmaraj Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के उपदेशों एवं अनुभवों से इसी परिणाम पर पहुँचते हैं कि आत्मिक शांति के बिना वाह्य पदार्थों से कभी भी शांति-लाभ नहीं कर सकते । इस समय प्रत्येक आत्मा आत्मिक शांति के बिना पौह्लिक पदार्थों से शांति ग्राप्त करने की धुन में लगी हुई है। इसी बड़ी भारी भूल के कारण वह दुःख में फँसी हुई है । जब हम 'सिंहावलोकन न्याय से अपने पूर्वजों के इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं, तो हमें पता चलता है कि आज कल के सुख-साधनों के प्रायः न होने पर भी उनका जीवन सुखमय था । क्योंकि उनके हृदयों पर सदाचार की छाप बैठी हुई थी | वे अपने जीवन को सदाचार से विभूषित करते थे, न कि नाना प्रकार के श्रुगारों से | वास्तव में वे आत्मिक शांति के ही इच्छुक थे । यही कारण था कि उनका जीवन सुखमय था। वे आज कल की भाँति आत्मिक शांति से रहित बाह्य शांति के अन्वेषक नहीं थे । अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि आत्मिक शांति किस प्रकार उपलब्ध हो सकती है ! इसका उत्तर यही है कि सर्वज्ञोक्त शास्त्रों का स्वाध्याय एवं पवित्र आत्माओं का संसगे आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए परम आवश्यक है। स्वाध्याय से आत्म-विकास होने लगता हैं और जीव, अजीव का भली भाँति निर्णय होजाता है, जिससे कि आत्मा सम्यग्‌-दशैन एवं पवित्र चरित्र की आराधना में प्रयलशील होने लगती है | इसी आत्मिक शांति की प्राप्ति के लिए राजा, महाराजा, बढ़े बढ़े धनी, मानी पुरुष भी अपने पोंहलिक सुखों का परि- त्याग कर आत्मिक शांति की खोज में लग गए । क्योंकि श्रमण भगवान्‌ महावीर स्वामी ने, आत्मिक शांति की उपलब्धि के लिए, म्रुख्यतया दो ही साधन प्रतिपादन किए हैं--विद्या और चरित्र। पुरुष विद्या--ज्ञान--के द्वारा प्रत्येक पदा्थ के स्वरूप को भली प्रकार जान सकता है ओर चरित्र के द्वारा अपने आत्मा को अर्ूुंकृत कर सकता है, जिससे कि वह निवाण के अक्षय सुखों का आस्वादन कर सकता है | जनता को उक्त दोनों अमूल्य रत्नों की प्राप्ति हो; इसी आशय से प्रेरित




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