महाभारत भाग ३ | Mahabharat Bhag 3

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Mahabharat (mool Sanskrit Tatha Hindi Anuvad) Bhag-3 by गंगाप्रसाद - Gangaprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाकथन सारतबर्ष सारे देशों का सम्राद है इसकी हिमालय य छुत्रु/ $ कलष-फल-नादिनी, भागीरथी गज्ा, श्रभिपेक धारा औरसब्त+& श्रादि ऋतुएँ पुष्प-वर्षा करने वाली पुर की क्न्याएँं हूँ । इसके दरे-भरे प्रदेश, हरी २ ससमल के फर्श से कम नहीं दे । इसके समुद्र मोतियों से, खन चन्दन से, पर्वोत सोने चांदी, द्वीरे, पन्‍ने तथा संगमरमर से भरे पढ़े ८ । कोहनर प्रसिद्ध हीरे की जन्मभूमि भी यही भारत है। यहां के शिल्पकी चर्चा करते हुए फर्गूसन साहब फरमाते हैं, कि दिल्ली के लोहस्तम्भ के समान स्तम्म अभीतक योरुप नहीं वना सका है, जो १६०० वर्षोंसे दृवा-यानी में खड़ा है, परन्तु मोर्चे का नाम भी नहीं है । इस देश के ढाके की मलमल, आसाम के रेशमी कपड़े और धीरे, सोतियों के आभूषणों पर किस देश की कामनी लट्टू नहीं होती थी। यहा के धन दौलत से लद़े हुए, उंढों को देखकर महसूद गज़नदी जैसे बादशाह के मुँद् मे पानी भर आता था। इसी कारण से यह देश परतन्य ( गुलाम ) हुआ या यों कही, कि इस मैना थो इसका मीठा बोलना ही पिंजरे मे या इस चुलबुल फो इसका चद्धचद्गाता वी क्फूस मे ले गया। आज इस सुलाम भारत का न शिल्प है, न व्यापार | राज्य की तो चर्चा द्वो क्‍या है १ दृस्मामों मे जलने से किसी प्रकार यचा हुआ साहिए्य भी न हो रहा है, जिससे इस देश की सम्यता




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