अथर्ववेद के सुभाषित | Atharvaved Ke Subhashit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
404
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)काण्डीका परिचय ]
स घुघ्म्या उपमा अस्य चिष्ठा+- (४1१1१) इस (ज्ञाबी)
ने हस प्रहाके भाभारस्थानमें उपम्रा देने योग्य
( यूर्यादिकोंकों ) देख! ( और ये सूर्यादिक गोर दैं )
पैसा लाना ।
सतश्च योनि असतश्य वि घः ( ४१॥ )-- उसने
पद् भौर नलसदफे टर्पांत्तेस्थानकों बिशद् छिया।
इयं पिच्या राष्ट्री एत्वग्रे प्रथमाय जनुपे कुधने्ठाः
( ४१1२ )-- यद्द भुयनमें रहनेदाटी तेजस्वी वितृ-
शक्ति प्रधम जन्मके छिये भाग बदती है ।
तस्मा एतं खुसचे प्यार्मछं घर्म श्रीणन्तु प्रथमाय
धास्यवे-- उस पहिके सर्वाघारके छिये इस पे शस्वी,
उुझोंद्ो हव्रानिवालु, कीलछासे शक्ति यज्ञकों करें ॥
रुसकी मीठिके किये प्रशखतम कमे करें ।
प्रयो जले विद्वान भस्य यन्घुः विश्वा देवानां
जनिमा विवक्ति ( ७१३ )-- जो विद्वादु शतक
भाई द्ोोता है वह प्र देवोंके जन्मोंद्रा वर्णन
करता है । हर
अद्म बह्मण उज्ञभार भध्यास:-- शक्षके मभ्यसे ज्ञान
प्रकट हुआ |
नीचे! उच्चै! खघा आभि प्र तस्थौं-- नीदेसे, उच्च
सागसे लपनी धारणशक्तियाँ फैछ रही हैं ।
सदहिद्यिः स पुथिब्या! ऋतस्था। ( ४३४ )--
बह ( धभु ) धृछोक भोर वही प्रधियौके ऊपर सत्य
निपमोका प्रवतेक है ।
मद्दी क्षेत्र सोेद्सी अस्कमायत्-- डसीने भाहाश भौर
पृषिषीरूषी घर स्पिर किया।
| मद्दान् मद्दी अस्कमायपत् वि जातो चां सद्य पाथियं
च रज्ञ1-- रस महान ( प्रभु ) घुछोक कौर
पृथिदी क्ो-भम्तरिक्षको-घरके समात सुस्यिर किया।
घ्रहस्पतिदवता तस्य सप्राद ( ४४१५ )-- ज्ञानझा
स्वामी प्रभु इस सदका सप्राटू है ।
इमम्तो यि यसरतु विद्याए-- ऐेशसी क्षानी बचमस
रीठिप्ते यहाँ रहते दें ।
चूने तद॒स्य काथ्यो द्विनोति मद्दों देयस्प पृब्पस्य
घाम (४॥१।६ )-- इस प्रादोन महात् पश्रम॒दे
आामहझा दणेतग शानी हो करता है ।
(५५
प॒प जब्े यहुमि। -साकमित्यथा पूर्व अर्घे विपिज्ते
ससन् चु-- पद्द बहुतोंके साथ टरपन्न हुआ, ( पर
यह विशेष शानी हुआ ) भौर याडीडे छोग मे
भाकाइमें छूयें भानेपर मी सोते रहे | (इस कारण
ये उच्नत नहीं हुए । )
यो अर्थर्वा्ण पितर देवयन्ध घुहवस्पति ममलाध
गच्छात्--- ( ४४१।७ ) जो स्थिर पित। देवोंके बन्धु
जानी अभुको नमरहार करके उसको टौक करू
ज्ञागवा है ।
स्व विश्वे्षा जनिता असः-- ' दे प्रमो | थ् सपझा
जनझ हो ? ( पा जानता है । )
काविदेंो न दभायत् खघाधान-- ( उप शानीो )
अपनी घारण धाक्तिधाडा देव कंप्ी दुवाता नहीं )
य आत्मदा बलदा यस्य विश्व पपास॑ते प्रशिप
यस्य देवा॥ ( श २11 )- मो भारिवद् सामध्य भर
घछ देता है, भौर सब देव जिघकी भाशाका पान
करते हैं ( पेसा एक देव है। )
योडस्पेशे द्विपदो यश्चतुप्पद)-- जो द्िपाई भौर
सतुष्पादोंचा पुक स्यामी दे ।
यः प्राणतो निमिषतों मदित्या एको राजा ज्षणतो
यमभूच-- ( ४११ )- जो प्राण घारण करनेवाझ्ले
मोर भरांले यूइनेदाडे भगवका एकमात्र राजा दे |
यस्य छायाउस्ते यस्य सृत्यु/--> शिक्ते झाश्नयमें
रहना कमरा प्राप्त करना है, भौर (डिप्ड़ा भाभप
छोडना ) खत्यु प्रात करना दे ( वह अगवक। पुर
राघा है। )
य॑ फ्रन्द्सी अवतब्यस्कमाने (४1३३ )-- छदने
मिडनेवाडी दो सेनाएं जिसकी शरण जाइए संरक्षण
प्राप्त करदी है । ह
मियसाने शोदसी अदन्वयेथास-- इानेयाके भाशश
कर प्रपिवी सदापाये मिप्तदों पुडारते दें ।
यस्यासी पन्या रखसों विमाना-- मिसकी प्राहिशा
यह रजोछोकछा मांगे दिशेष माननीय हैं।
यस्य चौरवी पृथियी थ मद्दी यस्याद उर्दन्तारिक्षम्।
यस्पासी छरो बितसों मदित्या ( श३॥४ )--
पिछड़ी मद्दिमासे घह धुछोक बहा हे, यह विर्दृत
User Reviews
No Reviews | Add Yours...