यतीन्द्र जीवन चरितम् | Yateendra Jivan Charitam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विज्ञापन ६ लव: बह हे है है है 4. नै 2५ डत विश्वास वेद आदि चर्म पर अवश्य दूढ़ ## हे। जायगा इसी प्भिप्राय से मैं ने विद्वज्जनशिरे- के मणि झ्लो शिवकुमार शास्त्री जी से संस्कृत श्लोकेां |# में श्री १०८ भास्करानन्द जी के जीवनचरित्र का संग्रह (1 कराया है ॥ झोर उक्त स्वामी जी ने जिस क्रम से ४ पूर्व प्व आाप्ममा के उपरान्त संन्यास तक ग्रहण किया है और उन आजक़्मो के घमा के किस चुद्ठि विचार पूलक पूरा किया है किस ढठूढ़ ज्ञान आऋोर विचार पूर्वक बेराग्य के साथ संन्यास का ग्रहण किया है इन सबचातें के जोकेई इस ग्रन्थ के! पढ़ मनन करेगा ते! उसके चित्त में मीमासा न्याय आदि शास्त्र के दुथा वाद से जो इंश्वर की सृष्टि आदि के विपय का सिद्धान्त बड़ी कठिनता से प्राप्त हेशता है ऋोर बहत दिनें के बेदान्ताभ्यास से जो बातें प्राप्त हनी कठिन हैं खेर सब एक थोड़े ही समय में चित्त में अजायणी। उसके साथ इुश्वर में पाट्ठा आर भक्ति भी उत्पन्न हेगी इत्यादि अनेक लासें। केश देख में इस ग्रन्थ के अच्छे अक्षरें! में छपवा कर बिना सूल्य आप लेागें। के अपंण करता हूं । यदि थोड़े भो मसनुप्य इस पुस्तक के पढ़ अपने के परम आरस्तिक बना कर अपने वेदेक्त घमम में दृढ़ होंगे ते मैं अपने के कृतार्थ समफ्रंगा ॥ जे सवहितामिलापी हर महादेवम्रसाद चौधरी--प्रयागराज | भ्श्ककक्क्क्क्ज्क्क््च््ज्क््कू $ के के $ के $ ६ कह ककुकुकूकुडुकुचुजुच दूत, स पा तन कर्क द् क्त्क्क् फ पपपककक कक्क्क्क्क क्र क््क्क पट पत 5 4८ लत 53444: क्क्क्क्कु




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