नपुंश कमृतार्णव | Napush Ka Mairta Ranav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
178
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भाषाटीकासमतः । 1
शोषयंत्याशु तन्नाशादरितश्वाप्युपहन्यते. ॥
तत्र संपूर्णतवॉगसभक्त्यपुपात् इुसानू ॥ ९१ ॥
एतेल्वसाध्या व्याख्याता सन्बिषातसमुच्छुयात् ॥
मातापिताके वीयदोपस और अपने पूेजन्मके पापके अमासे गर्भस्थ्
टोप वीर्यवाही नमो प्राप्त होकर उन नसोंको खुखा देते है. तब उन
तसाके क्षीण होनेते इसका बीये भी मारा जाता है फिर उसग्से जे
वालक होता है वह सवोग सुन्दर होते हुवे भी नपुंसक होता है यह सब
तपुंपर तीनों दोषों की आधिक्यतासे होतिंह इस लिये असाध्येह॥९०-९१॥
दूषित शुक्रके लक्षण
मिथ्याहारविहाराध्यामयोनिभेधुनादिभिः ॥
वेगाचातात्क्षयात्ापि घातूनां सप्तदूषणात् ॥ ९२॥
दोषाः पृथक समस्ता वा प्राप्य रेतोवहाः शिरा॥
शुक्त संदृपयेत्याशु तदबस्््यामि विभागशः ॥ ९३॥
अनुदित आहार और भदुचित विहार करनेसे अयोनि मेथुनादि खरा
वियासे बड़े वेगसे भागनेसे चोटके लगनेसे धातुवोंकी क्षीणतासे तथा ख्श
बसे वात पित्त कफ कृपित होकर अलूग २ अथवा मिलकर वीर्य॑वाह-
नसों प्राप्त हो वीयेकोी दूषित करते हैं सो उनका में अछूग २ कथन
करताई ॥ ९२-९३ ॥
दूपित शुक्रके भेद ।
फेनिलं ततु शुष्क च॒ विवर्ण पूति पिच्छिलम ॥
जन्यधतूपरस एप ताद तथाहएम्म ॥ ९७॥
शागदार, थोडा शुष्क, विरर्ण, हर्गेवित, यि
, थोड़ा विउल, रप्रक्तादिभन्य्
वातगयक्त, जार 7 के ७८ ९. ९.0
5उक्ते; जार वोय॑के गुर्णेसे रहित यह दूषित
शुक्रस आठ भेद हैं॥९४॥
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