पत्नी धर्मा संग्रह | Patni Dharm Sangrah

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Book Image : पत्नी धर्मा संग्रह  - Patni Dharm Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ ह पत्रोधमीसंग्रद । 3न्‍ बज. मी 2 3टी क्‍3+-टन+य० सर ध3लक क्‍पि नजीत+ रुकसन, एकत्त और णएकवृत्ति होकर रहना चाहिये। स्ियाँका धस्म , अथ ओर काम प्राप्त कर्नेका पहिसे पृथक कौई कधघन नहीं है ॥ १४ पे भावतोह्मतिदेशाद्या इति शास्त्र विधिःपरः (५ + #- पत्यु: पूव॑ समुत्याय देचश द्धि विधायच ॥५४॥ उत्याय शयनाव्ाानि छत्वावेश्मविभोधनम । 'साॉजनेलेपन! प्राप्य सास्निंगालीसमह'णम ॥६॥ पत्तिके अभिषप्रायर्े ग्थवा उसकी आज्ञासे स्त्री घर्म्मादिको जाने तथा करे, यह थास्त्रकी उत्तम विधि है। रत्री पतिसे पहले उठ कर, देहकी शुद्धि कए, शंय्या आदिफो उठाकर और भाड़ आदिसे चरका शोधन कर, मार्ल न, बुद्दारन शोर लीपनसे शग्निकी शाला ओर अपने अाऊूनको शुद्ध करे ॥ ७६४७४ शोधयेदग्निकाय्थाणि सिेग्धान्युष्ण न वारिणा। प्रोच्स्यंरितितोन्येच यधारस्थान प्रकत्पयेत्‌ ॥७॥ जिनसे होमादि होते हं ऐसे चिकने यज्ञ पाचादि “भोक्षएयें” यह मंच कह कर गरम जलसे शुद्ध करें। फिर उनकी ढीक स्थान्मे ले लाधूर रख दे॥ 9 ॥ - महानेशस्थ पाचाणि वच्चि: प्रलात्य सर्वधा । सद्धिश्र शोघ्येच जीं तचान्मि विन्यमेत्ततः ॥८॥)। पफेसे चाहए रघोईके स्व पाच चीकर पोता मिट्ठीमे चब्टेकों चीते योर उसमें झग्नि स्थापित कर देवे ॥ ८॥ स्घखतवानि योगपात्राणि रसांचद्रतिणानिच। कृत पूर्वाड क्ार्याच खगुखनभिवादयत्‌ 1०॥ वदतनेके पाच्रोक्तो आीणर रामों तथा द्वव्योंदोी याद दारदो कि लिन किन चातुओं आदिके पात्रोर्म क्क/न छीन र्मादि रखता डनस उन पावहोंमें वे वे रछादि रस देवे। दोपहरमे पटलेके फाम सरके पापने यतिका अभिवादन करें ॥ ८ ॥




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