व्रतोत्सव - चन्द्रिका | Vratotsav - Chandrika

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Vratotsav - Chandrika by श्रवणलाल शर्मा - Shravanalal Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोरीउत्सव ( गरणँगोरी )। प्डः का प्रारंभ कुडुम्वसे होता है। जबंतक हमारे कुटुम्बमे एकता न होगी, तवतके देशर्म एकताका होना असंभव है। कुडुम्बमें स्त्री और पुरुपकी ही प्रधानता दोती दे; और तो या, परन्तु (न दोनोको भाहंस्थ्य-राज्यका राजा कहै, तो भी अत्युक्ति नहीं है। सम्पूर्ण परिस्थितियोंकता सामना फरके बाह्मरोज्यका मार्ग लरज़ रखना--यह पुरुषका राज्य है श्रीर ठखी प्रकार भीतरो--गृदह-सम्व॑न्धी परिस्थितियोंक्ो अ्रनुकूल रखनो--प्रह सत्रीका राज्य है। इसी कारण शास्रकार- गण “गृहिणी गृहमसुख्यते--धर स्रीका है--ऐसी आशा देते हैं| एफ राज्पमें दो खतत्ब्र राजा हो और वे निज निज खार्थके वशीमूत दोकर पार्य करें, तो निःसन्देह ऐसे राज्यको ब्रह्म भी झापत्तिसे नहीं गधा खसकते। हाँ, वे दोनों दी यदि ध्यक्तिगत खार्थकों छोड़कर राज्य बढ़ानेके निम्ित्त, एक दूसरेके सद्ायंक द्ोकर कार्य. करे, तो अवश्य ही इस प्रकारफे राज्यको देव भी नष्ट करनेमे॑ समर्थ न हो सकेगा। “यही दशा दास्पत्यंकी है। ख्री और पुरुष, दो राजा मिलकर एक गाहस्थ्यको चलाते हैं। . जब इन दोनों शाजाओरम खार्थयुद्धिका प्रवेश हो जाता है, तब अमैफ्य-द्िघान इस राज्यको अपने झधिका एमें लेकर, नए्-भ्रण कर डालता है। इसी कारण परमकारुणिक जगदीशने ख्री और पुरुष दोनोंको निःखार्थी होकर गाहस्थ्यका पालव करनेंकी थाणा दी है और उसीको गाईस्थ्य कहते हैं। इस परम. प्रयोगनीय निःखार्थ- त/को टिकाऊ वनानेकी यद् वड़ी अच्छी रीति है, कि पुरुष अपने जीवनको र्रीके निमित्त और ख्री अपने जीवनको पुरुषके निमित्त समझे । उपरोक्त त्यौहारमें इसी विषयक्रो कैसा अ्रच्छा चरितार्थ,किया गया है। खत्रीका ध्येय सांसारिक कार्योंके फरनेमें तो पति रदता ही दे, परन्तु पारमार्थिक कार्योंके करनेमें भी यदी देतु रदे,--“मेरे इस शुभ कर्मसे प्रति चिरजीवी. हो” कैसी सुन्दर निःखार्थता है.। परन्तु खेद है कि श्राज़ कल इस खोभाग्यप्रद्‌. प्रतको फरनेवाली स्धि्योके श्रग्तःकरणमें यह तादात्य्य भाव उत्पन्न नहीं होता । . स्रियोंकों इस त्यौहारसे यह शिक्षा लेनी चाहिये/--दमारा जीवन पतिके जीवनाथें है। जिस प्रकार एक सच्चा ईश्वरभक्त समस्त कार्योको करता हुआ, कृष्णार्पणक द्वारा सब कर्-बन्धनोसे विनिम्ेक्त होकर भोक्षको आप्त करता है; उसी प्रकार एक सच्ची पति-परायणा स्त्री भी संसारके अ्रखिल कार्योंको: पतिके निम्ित्त करती हुई, सौसाग्यकों भोगकर अस्तर्म पति-लोक-गामिनी होती है।” ख््री-जन्मका यही साफल्य है।.... ह २




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