भविष्य पुराण भाषा | Bhavishya Puran Bhasha

Bhavishya Puran Bhasha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द मविष्यपुराण भाषा । हजारवरषह ओर दोसावष कलिके सन्ध्या आर सन्ध्यांश गिने जाते हैं ये सब वर्ष मिलके बारहहजार वर्ष होते हैं यही दें चंताओंका एक युग कहलाता है देवताओंके हजारयुग . होने से ब्रह्माजीका एक दिन होता है आर यही प्रमाण उनकी रात्रि काहे अर्थात एकदजार यगकीही ब्रह्माजी की रात्रि होती है जब ब्रह्माजी अपनी रात्रि के अन्तमें सोकर उठते हैं तब सत्‌ असर रूप मनको उत्पन्न करते हैं वह मन स्रष्टिकरनेकी इच्छा से विकार को प्राप्त होता है तब उससे ्ाक़ाश उत्पन्न होता हे जिसका गुण शब्द है काश विकृत होता है तब अति बलवान उत्पन्न करता है जिस वायका गण स्पर्शंहे इसी प्रकार बायसे रूपगण करके यक्क तेज तेजसे रसगण करके युक्त जल ओर जलसे गंध गणयक्क भमिकी उत्पत्ति होती है जो दमने बारहहजांर वर्ष का एक दिव्य यंग कहा वेसे इकहत्तर यग एक मन्वन्तर होता हे आर ब्रह्माजीके एक दिन में चो दह मन्वन्तर व्यतीत होते हैं. बब यगांकी व्यवस्था कहते हैं सत्ययुग में घर्म के चारोंपाद वर्तमान रहते हैं फिर त्रेताआ्मादे युगाम .क्रमसे एक २ चरण घटता जाता हे सत्ययगके मनष्य च्ारोग्य घर्मनिष्ठ सत्यवादी होते हैं और चारसो वर्ष तक जीते है फिर त्रेतात्मादि युगों में इन सब बातोंका एक २ चतु थाश न्यन होताजाता है त्रेता के मनष्यों का आयष तीन सो वर्ष डापर के मनुष्यों का दोसौ ्औौर कलियग के .मनष्यों का व्ञायुष्‌ एकसो वर्ष होता है ओर इन चारों यगों में घर्म भी भिन्न ए भांति के हैं सत्ययुग में तप त्रेता में ज्ञान दापर में यज्ञ चर नादिटुप में दान करनाही मुख्यह ब्रह्माजीने सम्पूर्ण संछ्टि को रक्षा के हेतु अपने मुख भुजा ऊरु अधथात्‌ जांघ और चरणों से ब्राह्मण दि . चारवर्ण उत्पन्न किये. पढ़ना पढाना यज्ञ क- रना यज्ञ कराना दान देना और दान लेना ये छः कर्म ब्राह्मण के




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