अष्टदशपुराण दर्पण | Ashtadashpuran Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
429
श्रेणी :
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No Information available about पं ज्वालाप्रसाद जी मिश्र - Pt. Jwalaprasad Jee Mishra
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६) भूमिका |
दर्श्म सम्देह नहीं कि अश्ादशपुराण कई रक्ष छोफोर्मं पूण हुए हैं। जिनका पठन
प्राठन अब्पायास और अर्प समयर्म नहीं होसऊता और सहसा कोई अष्टादशपुराणका
बिपय जाननेमें भी समर्थ नहीं होसकता, इसीसे बहुतसे पुरुष इध्त विद्यासे रहित होगे,
और इस विपयर्म नित नई कुतकना उनके हृश्यमें स्थान पाती जाती है ।
मेरा बहुत समयसे ऐसा विचार था कि पुराणविद्याका एक ऐसा अम्थ निर्माण क्रिया
बाय, जिसमे पुराणाके सम्पूर्ण विषय जाजॉय तथा जो जाधुनिक विदेशी और उनके
अनुयायी स्वदेशी पुरुष हो उनके अमकी निम्रत्ति होकर पुराणोंकी श्राचीनता सबको सहतुक
बिंदित होजाय, एवं पुराणोंक्रे रद सण्ठ पर्व पूर्वोच्तभाग अव्यायक्रमसे कथा सरलता
पूर्वक सबके हृदयेगम होकर, पुरातन और णर्वाचीन समय पुराणोंकी स्थितिका अकरार
विदित होकर उस विषय किसीकों शफरा न रद्दे और सर्वक्ञाधारणका उपकार हो ।
यही विचार कर मैंने इस प्रकारसे टरस ग्न्यवी रचना की है कि, सम इयोद्धात मकर
णर्मे पुराणोंडी उलत्तिका निर्णय, उनऊा चेदेंसि ससन्ध। ग्रीध पारिदारा। सम्प्रदाय भेद,
लवतार प्र_ग, करपमेदानुसार प्राण वर्णन, पुराणों विषय पाश्चात्य विह्वानका मत
जार उनके मतका खण्डन,पुराणोमें शेतिदासिक इछि, पुराणोंकी छोकत्तरया, अंथारंभापुरा-
णेकि अध्यायक्रमसे कथासूची उनकी प्राचीनता पर विचार, उनके संस्कार और स्थितितर
ब्रिचार किया है, जिसके अवछोकनसे पुराणविषयक्री सम्पूर्ण यथा पराठकॉके लूदर्गगम
दोनायगी ।
इसमे सन्देह नहीं कि बहुत यु राज्यविष्ठय आर उलट पुछट दनेते पराणेफी स्थिति
थोदा बहुत अन्तर आगया €,यहांतक कि प्राण तो पूरे नहीं मिल्ते,उछने अपनी संग्सास
युछ अधिक रूप घारण डिया ८, उसमें यदी सम्मव ६ हि, सु पुराणका विषय यहीं यही
डूगेग्स सन्निविष्ट द्वोगमा ६, जहां फट्दी मश्षिप्त अंघ मिलाया गया ६ बढ भी सहूअमें ही
बुद्धिमानोंगों विदित होप्तकता ६ आर जद्दांतक संमय ४ बढ़ परश्षिम्र अंद्य सम्मदायके टेप
फारणदी पीछे दिस दिये गये हैं) उदाहर्ण[यथानरि' शुदशनमात्रण भियद्रोद:प्रमायत] और
पिरपिनक्पाडम इत्यादि यहां यहीं ऐसे छोड कण्दी माठा निडद्ध सम्सन्धी विशेष
दिखांद मेधा दयनाआर। संख्थयाय सर
दिया मै निसदा दो बद् संश् सम्पदायक्रे आप्रद्ी पुरपेंकि
॥मराव हुए
विन,पर एक डे। पुराण क सियराय धष परायाम शा ब्रक्ति थंत नी € |
इस फप्प्दायक भामररा उदा हर इस समय भी हमारे सामने उप्यित दं। स्मानपम*
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