उथली गहराईयाँ | Uthali Gahraeyan

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Uthali Gahraeyan by संजय चौरसिया - Sanjay Chaurasiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उथली गहराईयाँ / 27 त्तेरह देख आदमी से आगे उसके साये हुए हैं कि ये चिमनियों के धुएँ सूरज छुपाये हुए हैं जो कि हमने अपने खून से बनायी थी कभी आप उन्हीं तस्वीरों से घर सजाये हुए हैं चिंगारी समझ कर डरते हैं जो जुगनुओं से कल जो घर -जले थे इन्हों के जलाए हुए हैं एक तुम हो कि हाथ पे हाथ रखे बैठे हो, और- एक हम हैं कि अंगुली पे पहाड़ उठाए हुए हैं सुनो बोलते नहीं हैं पर गूँगे भी नहीं हम अपने हाथों से अपना गला दबाये हुए हैं।




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