जैन-कन्या-बोधिनी भाग - 2 | Jain Kanya Bodhini Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
486 KB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )
सकते हैं। उन लोगों ने ससार के सब पदार्थों
वो दो प्रकर में ले लिये हैं ।
सुभद्रा- क्या सम पदार्थ दो दी प्रकार के हैं? जरा
बताओ तो १
शाम्ता -लो सुनो | एक तो वे मिनमें जान है, और जो
समभने, उिचारने व देसने क्री ताज़व रखत ५ ।
खुद एक जगह से दूसरी जगह चल फिर सक्रते
हैं। जैसे मनुष्य, बैल, घोड़ा, चींटो भादि । इनयो
जीय फ़ह्ते हैं। और दूसरे अजोय पढार्थ- निनमें
जान नहीं होतो है, उनको जड़ उहत है । जैसेडेट,
पत्थर लर्डी आदि ।
सुभद्रा--भोदो ! यद्द तो सचमुच बडी सो गो बात है ।
जीव भौर अजीय में तो सारी दुनिया आग
बढ़िन !
शॉन्ता--हा, पर जग और सुनो) जीत भी दो तरह के
दोते है ।
सुभद्रा--पे कौन पौनसे ?
शाज्ता--यह फैल दताऊँगी । आज़ इतना दी पहुत है ।
सुमठा--बहुत अच्छा बहिन, में कल इसी समय आपके
पास आाऊगी | जयजिनेन्द्र !
शान्ता--जयभिनेन्द्र !
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