बेगाने घर में | Beghane Ghar Main
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“लो । बाप ने मारी मेढकी और बेटा तीरन्दाज़ ! एक सुर तेरे अब्या
ने उठाया था और एक अब तू उठा !” गनपत ने मज़ाक किया ।
“व्म, हुई गवा राग-रग ? कहकर बनफुलवा उठने को हुआ, तभी उसे
मनवा की पुकार भी सुनाई पड़ गई ।
“बापू” “ ओ बापू |”
“रे मनवा, बापू को गोहराय लेव ।* चपी ने पीछे से आवाज़ दी ।
“अब गोहराय तो रहत हुई। अऊर का ढोल बजायी ?” मनवा ने
जवाब दिया तो बनफूलवा फुर्ता से भीतर को भग लिया ।
“स्माला ! जोरू का गुलाम !” सबने ताना दिया।
“जाई, घोड़ी सातिर चना भिजा आई 1” जगेसर उठ गया । पलटकर
आया सो केवल गनपत को ही चारपाई पर बंठा पाया ।
“हम कह्टढे, के बज लिया होगा ?* अब तलक मालिक जगे बैठे है
शहर लैवरेरी की बत्ती अब तलक जली है ।* उसने बताया
गनपत उठ गया और लाइब्रेरी की तरफ हो लिया ।
चबूतरे पर चढ़कर देखा, मालिक एक अग्रुली हो ठो पर रखकर चुप
चाप पोथी बाच रहे है। चारों तरफ कसी तो चुप्पी छाई है । पर, चबूतः
पर तमाम चादनी छिटकी है। पीले गुलाव बड़े-वडे सितारे-से बेल में गुश्
हैं। पर, मालिक को उस सबसे कोई सरोकार नही ।
मालिक का जीवन तो जैसे बडे हॉल की दीवाल-घड़ी की भाति एक्
हो ठौर पर दिकूटिका रहा है। गनपत जिसे जीना कह सके वैसा कुछ भ॑
तो मालिक के साथ नही घट रहा । “एक वह पिछवाड़ा है, इस्ती कोठी के
कि पाव धरते ही रेलवाई का भारड याद आ जायेगा। जिधर ताको बः
उधर ही कोई ना कोई इजन भकाभक धुआ छोड़ रहा है।
इसके बाद ग्रनपत से नीम तले नहीं पड़ा गया। वह खाट उठाक
तीम तले / २
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