श्री जैन पद रामायण | Shree Jain Pad-ramayan

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Shree Jain Pad-ramayan by वैद्य धूलचंद सुवर्ण - Vaidya Dulchand Suarna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जनपद रामायण धथम खण्ड | (९ न्‍जबिस+ मच्छ ने चल> रा 0 आय कप थे न को पक नक्पीनक न नवशक न इन्द्र' तणे अथिकारे अधिफो, ठेका राज्य निशंका है |ब० ॥१५। निमित्तिए मुज तुमपर भाख्यों, मनसा अधिक उम्राही है । तेडी कुदुम्ब आडउम्बरे राजा, सा कन्या तब व्याही है ।त्रण१५ पुर कुसुमांतर' नव॒रे चसावी, वासवनो* सुखमाणे है । धर्म सुकम करन्तां बहुलो, जन्म कृतार्थ जाणे है ।ब० ॥ १७। एक दिवस 'कैकशी' निशाएं, सिंह सलूणों देखीयों है । गजकुम्भस्थल२ भेद करतो, चपने हर विसेखियों है | बज १८॥ गर्भवती सा राणी वाणी, अति असुहाणी भाखे है । भोडे अग कलेश करन्ती, मानघर्ण मनराखे है ।ब० ॥ १९॥ दर्पण छांडी खडने मुस देखे, इन्द्रही आण मनावे है । अरिशिर पाव दियू इस्यादिक गे प्रभाव जणावे है |ब० ॥२ण प्रतिश्यखियों घर त्रास पडंतों, शुभवेला सुत जायो है । सहस०» चतुद्दश वर्ष प्रमाणे, अविचल' होई आयो है। च० ॥२१॥ भीपेन्द्रेग”* पूरापित परगट, माणिक नव निपायो हे । हार उठाई ऊचो लीघो, पहरी गले शोभायो है |ब० ॥ २२॥ देखी 'क्रैकशीः एह तमासो, अचरिज अधिक उपायो है। 'रत्नश्रवाने एह अपूरध, राणीए झूुयाल दिखायो हूँ ।बर० ॥२श॥। राक्षस इन्द्रे 'घनवाहन ने' आप्योथो इस सुणियों है । पूर्वेज़ जे तवअ्च्यों पूज्यो, देव तणी परे थुणियों हे ।० ॥२४ नाग हजारे सेवित किणही, ऊपाड्यो नवि दीठो हे । बालक थांरो लिलाएसो, कण्ठे पहरी बेंठों है।ब०॥ रण ॥ नव माणिक मानव छुख दीसे, दशमो सहज दिखायो है । दर्पुख' नाम पिता तव थापे, उच्छच् अधिको थायो हे ।ब० ॥२६। अन्न लत 3»>3>+++>+4>क+-+लज जन 5 अलनीलीक किनीक न १ इन्द्र1 २ हाथोन कुस्मस्थर भेदतां लिए दीठ 1 ३ शाह । ३ चोदर हजार यर्ष ( सहल-सहख ) जैनरामायणमा साष्ठा घारे इजार खष् न प्रमाण स्णय छे 1 « भीषमेन्द्र राजाए पूध आपेखध ॥




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