प्रमाणप्रमेयकलिका | Pramanprameyakalika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
160
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हीरावल्लभ शास्त्री दर्शन - Heeravallabh Shastri Darshan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आकथन २७
ऐक्य है। इन सभी दर्शनोका एक मात्र उद्देश्य कर्मबन्धनके भोगम पड़े
हुए जीवको उस बन्धनसे मुक्त कराना और मोक्ष दिलाना है । इस
उद्देश्यमे कोई अन्तर नही है, चाहे वह भ्रौत दर्शन हो, चाहे अर्हतादि-मुनि,
परम्परा प्राप्त दर्शन हो। यह दूसरी बात है कि भारतीय दार्शनिको-
का जीवके स्वरूप, धामिकाचरण, मोक्षस्वरूप, तत्त्वसंख्या, प्रमाणसख्या
आदिके विषयमे परस्पर नितान्त मतभेद है। और इस मतभेदका कारण
है आत्मा, पुनर्जन्म, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, बन्व-मोक्षादि आत्मसम्बन्धी
मान्यताओकी अत्यन्त सूक्ष्त्ता और दुरूहता। ये सब हस्तामलकवत्
प्रदर्शित नही किये जा सकते और न वे स्वबुद्धिजन्य तर्कसे भी जाने जा
सकते है । ऐसे दुरूह एवं अचिन्त्य भावों ( वस्तुओ ) के बारेमे महाभारतमे
कहा है कि जो अचिन्त्य तत्त्व है उनकी सिद्धि अल्पज्ञ अपने तकोंसि करनेका
प्रयत्त न करे ।
भारतीय दशनोका प्रयोजन : तस्वज्ञानप्राप्ति :
फिर भी दर्शनशास्त्र तत्त्वोका ज्ञान करानेमे साधन है। विभिन्न
युक्तियाँ, विभिन्न तक और अनुमानादि प्रमाण उसमे प्रदर्शित किये जाते
है और इन सबके आधारसे उनका हमे यथायोग्य ज्ञान होता ही है। उक्त
सूक्ष्म तत्त्वोका भी ज्ञान तत्त्वदर्शी, अनुभवी और परानुग्रही जीवन्म॒क्त तत्त्व-
द्रष्ठाओके कल्याणकारी सदुपदेश तथा शास्त्रसे हो सकता है। शास्त्रों और
तत्त्वज्ञोके अनुभवोमे भेद देखनेमे आनेसे कौन-सा शास्त्र, कौन-सा सम्प्रदाय,
किस धर्म ओर किस तत्त्वज्ञानीको प्रमाण माना जाये, इसका निर्णय मनुष्य
अपने प्राक्तनकर्मानुसार प्राप्त अदृष्ट, सस्कार, जन्म, वंश, विद्या, बुद्धि
आदि उपकरणोसे ही कर सकता हैँ । ये उपकरण ही उसे किसी-न-किसी
सम्प्रदायके सिद्धान्तोको माननेके लिए बाध्य किये रहते है । अभिप्राय यह
१, अचिन्त्याः खलु ये भावा न तांस्तकेण योजयेत् ।”
“-महाभा, भी, ५-१२ |
User Reviews
No Reviews | Add Yours...