सतखंडगम | Satkhandagam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-परिचय. - (११ ' चाहिये कि सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्व इन दो भ्रकृतियोका तो बंध होता ही नहीं है, वे तो सम्यक्त्व उत्पन्न होते समय मिथ्यात्वके तीन ठुकडे हो जानेसे सत्तममें आ जाती हैं | तथा तीन बेदों और हास्थ-रति व अरति-शोक इन दो युगढछोमेंसे एक साथ एक ही का बंध सम्भव होता है। मोहनीयके दूसरे वधस्थानमें सासादनसम्यग्दष्टे जीव हैं जो उपर्युक्त वाईसमेंसे एक नपुंसकवेदकी छोड थेप इक्कीस प्रकृतियोंका बंध करते है। तीसेरे स्थान सम्यग्मिथ्याइष्टि व असंयनसम्पग्दृष्टि जीब हैं जो उक्त इक्कीसमेंसे चार अनन्तानुत्ंधी कषायों व स्रीवेदका छोड़ शेष रुत्तरका बंध करते हैं। चौथे स्थानमे संयतासंयत जीव है जो चार अग्रत्याख्यान कषायोंका भी बंध नहीं करते, केवल शेप तेरहका करते हैं| पा स्थानमें वे संयत जीव हैं जो चार प्रत्याख्यान कपायाका भी बंध नहीं करते, पर शेष नौका करते है | छठवें स्थानमें वे संयत जीव हैं जो मोहनीयकी अन्य प्रकृतियोंको छोड केवछ चार संज्वलन और पुरुषवेद, इन पाचका ही बघ करते है | सातवें स्थानमे वे सयत जीव हैं. जो पुरुषवेदकी भी छोड केवल सज्वहुन- चतुप्फकों वाघ॑ते हैं | आठवें स्थानमें वे संयत हैं. जो क्रोध संज्वहनकी छोड़ शेष तीनका ही बघ वस्ते हैं । नोंबें स्थानवाले वे सयत है जो मान संज्वलनका भी बंध करना छोड़ देंते हैं व केवल शेप दो का बंच करते हैं | दशवे स्थानमें केत्रछ लोभ संज्वछनका बध करनेवाले सयत हैं । आयुकर्मकी चारों प्रकृतियोक्रे अछग अछहूग चार वधस्थान हैं--- एक नरकायुको बावनेवाले मिव्याइष्टिका; दूसरा तियचायुको वाधनेवाले मिथ्यादष्टि और सासादनसम्पर्दृश्टिका; तीसरा मनुष्यायुक्रो बाधनेवाले मिथ्यादष्टि, सासादन व असयतसम्यग्दष्टिका, और चौथा देवायुको बांधनेवाले मिथ्यादष्टी, सासादन, असयतसम्पग्दश्टि, सेयतासयत व संयतका | यहा यह बात ध्यान देने योग्य है कि सम्यग्मिथ्यादष्टि जीव किसी भी आयुको नहीं बाघता। नामकर्मके वंधयोग्य प्रकृतियोकी संख्यांके अनुसार आठ वंधस्थान हैं. जिनमें क्रमशः ३१, ३०, २९, २८, २६, २५, २३ और १ प्रकृतियोंका बंध किया जाता है। इन स्थानोंका चार गतियोंके अनुसार इस प्रकार निरूपण किया गया है-- नरकगति और पचेन्द्रिय पर्याप्तका बध करता हुआ मिथ्याद्यष्टि जीव २८ प्रकृतियोंको बांधता है (सूत्र ६२ )। तिबचर्गति सहित पंचेन्द्रिय पर्योप्त व उद्योतका बंध करता हुआ मिथ्यादृष्टि जीव अथवा सासादन जीब एवं तिचगति सहित विकलेन्द्रिय पयौप्त व उद्योतका बंध करता हुआ मिथ्या- दृष्टि जीव मिन्न प्रकाससे ३० प्रकृतियोंकी बाघता है (सूत्र ६४, ६६, ६८ )। तियचगति सहित पंचेन्द्रिय पर्योप्तका बंध करता हुआ मिथ्यादृष्टि या सासादनसम्यग्दष्टि एव तियेचगति सहित विकलेन्द्रिय पयोप्तका वध करता हुआ मिथ्यादष्टि जीव मित्र प्रकासे २९ ग्रकृतियोंको नाता है. (च्रत्र ७०, ७२, ७४ ) | तियचगति सहित एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त और आताप




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