जैन राजतरनगिणी | Jain Rajatarangini

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Jain Rajatarangini  by डॉ. रघुनाथ सिंह - Dr. Raghunath Singh

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रघुनाथ सिंह (भारतीय राजनीतिज्ञ) :-

रघुनाथ सिंह (१९११ - २६ अप्रैल १९९२) एक स्वतंत्रता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता, तथा लगातार ३ बार, १९५१, १९५६ और १९६२ में वाराणसी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के तरफ से लोकसभा सांसद थे। वे स्वतंत्र भारत में, वाराणसी लोकसभा क्षेत्र के पहले निर्वाची सांसद थे। १९५१ से १९६७ तक, तगतर १६ वर्ष तक उन्होंने वाराणसी से सांसद रहे, जिसके बाद १९६७ के चुनाव में उनको पराजित कर, बतौर सांसद, उन्हें अपनी सादगी और कर्मठता के लिए जाना जाता था।

निजी एवं प्राथमिक जीवन तथा स्वतंत्रता संग्राम -

वे मूलतः वाराणसी ज़िले के खेवली भतसार गाँव के रहने वाले थे।उनका जन्म

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३: ४२-४६ ] श्रीवरक्ृत्ता १५ तावन्मन्त्रियुतां राजा. स्थितोब्वन्तिपुरान्तरे । तत्यत्यावृत्तिवार्ता तां श्रत्वा तूर्ण न्‍्यवर्तत ॥ ४२ ॥ तव त्तक भन्त्रियों सहित राजा अवन्तिपुर* में स्थित रहा, और उसके प्रतिगमन की वार्ता सुनकर, ज्षीत्र लौट आाया। राजा सुख्यपुर प्राप्त पिदव्यागमबिहलः | आनीय सचिवात्‌ सर्वान्‌ सभान्तरिदमत्रवीत ॥ 9३ ॥ ४३. पितृव्य आगमन से विह्वुल, राजा सुय्यपुर (सोपुर) पहुँचा, सव सचिवों को लाकर सभा मध्य यह कहा--- पितुः क्रमागतं राज्य पृत्रस्येत्युचितं मम । को5यं पिद्॒व्यों ज्येप्ठोडपि कनिष्ठो निर्मितोद्यमः ॥ ४४ ॥ ४४. पिता का क्रमागत राज्य, मुझ पुत्र के लिये ही, राज्य के लिये उचित है | ज्येष्ठ पर भी, राज्यप्राप्ति प्रवत्तशीलू, यह कनिष्ट पित॒व्य कौन होता है ? अथवा वीरभोग्यायां भ्रुवि कोश्यं नयो इयोः। -- युद्धेन विजयी यः स्थाद राज्यमाक्‌ सोड्स्तु मण्डले॥ ४५ | “पृथ्वी के वीरभोग्या होने पर दोनों में यह कौन-सी नीति है ? युद्ध द्वारा जो विजयी ध् हो वह मण्डल में राज्याधिकारी हो | बा श्रुव्वेति नृपतेवॉक्य अत्यूचुमन्त्रिवायकाः । का गे ये तेथ्प्यादमखानादबास्वद्थ वाधना हताः ॥ ४६ ॥ ४६. इस प्रकार राजा का वाक्य सुनकर, प्रमुख मन्त्रियों ने उत्तर दिया--आदम खाँ आदि को तम्हारे ल्यि ह्दी विधाता ने हुत कर द्विया | पाद-टिप्पणी : अकवरी दीनापुर तथा फिरिइता ने दीपालूपुर ४२. ( १ ) अवन्तीपुर : तवक्कातें अकवरी में. छिखा हैं । उल्लेख है-- सुल्तान उस समय सैर के लिए दीनापुर पीर हसन लिखता हैं---सुलूवान इन दिनों वीना गया हुआ था। यह समाचार सुनकर वह अपने उंगर की सैर को गया हुआ था। ज्योंही यह खबर चाचा से बुद्ध करने के छिए ( सुब्यपुर ) सोपोर छुता वं-ऊ प्रख्दियार अपने चच्रा का मकावला करने के 2, > ्््ि >> पह्नेंचा पहुँचा ( ४४८ ++ ६७७ )। लिये सोपुर पहुँचा ( १८६ )1 फिरिब्ता लिखता है--छुल्वान दो दीपालपुर पाद-टिप्पणी : रु बन ठ् पाठ: पर आक्रमण ४३२. सुब्य पाठ्झअम्बई 1 की ओर था गया था अपने चाचा पर आक्रमण करने के छिये शीवपर (सोपोर < सुव्ययुर) बढ़ा (४७ ८) । पाद-टिप्पणी : ७ 9 री भोग्या तवककाते कअकवरी तथा फिरिब्ता दोनों का ५- ( १ ) वारभाोग्या : श्रीवर ने वीरमोग्या स्नोत इस घठना के समन्वन्ध में एक हा हूं! अन्दर बसुन्धचरा भाव का उक्त इछाक मर प्रकट किया हर केवल इतना हुँ कि अवन्तीपर के स्थान पर ठवक्‍्काते ( द्विक_ : २: हृ८ )




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