गीतगोविन्द काव्यम | Geetagovind Kavyam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दर
धर्ग: ६] भांपादीफा समतम । ५४
याद एदयारमककल»क् न रमन मम टन रमन मम कम परम शा डर कमा कप कान न कम न कल
भा० ८०-ह साख ( राधे ! ) अनुराग ( प्रेम, भारत
स््नेह,-) के बशीभूत हकर सकल संसारकों आनरद देते
हुए नीलकपतलोक समान स्पाम तथा फोमल श्रगोंसे
कापदेवर्क उन्साहकों बढ़ाते हुए, चारों ओर अपनी
इच्छा पूरक त्रमवनिताओंस रमण किये हुए, सव श्रेगों
में आलिगित मूरिमिन श्रृंगार के सपान भ्रीक्षष्णचरद्र
बसस्तऋतुपे ( जनवानिताओंके साथ) क्रीढा कर रहे
हैं। एन्दीवर भ्रेणी श्यामलञ),, यह विशेषण पद 'श्याम-
मोभवतिशुंगार/ सितोहास। प्रकीत्तितः, इस प्रमाणसे
मृंगार रसका स्वरूप स्पाम है ओर अह्ृष्णचर्द्र सवये
३५ (%
स्पाम . हैं इसीलिये “मृंगार। पति मापिमानिव,,
कहा है ॥ १॥
रासोब्नासभरेण विधमशृतामाभीरवामस्ओु-
वास भ्यएपरिरभ्य|नभरमुरःप्रमान्धया राधया॥
साधुलददनंसुधामयमिति व्याहत्य गीतस्तुति-
व्याजादुड्डटजुम्बिदः स्मितमनोहारी हरि।
पांतुब। ॥ २ ॥
6 ७४७ “५
अब कवि मक्तोंकों आशिवाद देते है
ऐ
भा० ही ०--रासक्रीड़ाफ़े आनन्दमे विश्वम युक्त
( मंगारं रसमें निमप्न ) गोपांगनाओके सम्पुश्तहाश
' ज्ेमसे अन्धी ( विहछू ) राषिकाने तुम्दारा सुन्दर .इस
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