श्रीमद् भागवत गीता | Shrimad Bhagvat Geeta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) प्रस्तावना । है तीन पदक्क ( छः छः अध्यायोका एक एक भांग ऐसे मिकर अठारह - अध्याय ) हैं. इस शालत्रका मुख्य उद्देश संपृर्ण आषिमात्राक़ी स्वस्व्णों- , भमोक्त धर्मोचरणपुर्वक परमात्मतत्तज्ञानसे मोक्षसंपादन कराना यही है। ऐसा यह परमोपयोगी मगदद्गीवाशाख सर्व सज्जनेस संमानित इस भुगेडऊम सुप्रसिद्शी है. इस भगवद्गीवाशाखरके ऊपर अयावधि बहुत शआचायोने माण्यरचनाक्रके उपनिपदर्थोका आभ्येवरिक सारअंश- प्रकंकिया है, जिसके धारा अनेक सज्जनोंको परगार्थका छाम हुआ है. ऐसेही अनेकानेक विदृज्जनोंने सविस्तर टीकाये निर्माण करके भाष्यो- क्ताथेक्ना अनुसरण किया है परंतु ऋाठ्माहात्म्यस्तें संस्क्ववियाके भध्ययन अध्यापनंक प्रचारक हास होनेसे सर्वेत्ताधारण लोगॉकी यथाथ सार« अधेका बोध होना दुलेम हुआ यह विचार करके प्रममान्य भीमन्नि- खिलगुणगणाल्कृदविदृद्रणशिरोवतंस श्रीमत्परमहंसपरिनाजका चाय पुज्यपादभीस्वामि चिदनानेद गिरिजी महोदयने हे सांझारिक छोगेंके उपकाराथे श्रीमच्छांकरमाप्यके पदपदार्थन॒ुदूछ यह गढथदीपिका[? दावयक भाषादीका निर्मोणदरके सब सांचारिक छोगेंके उपर पहन अनुग्रह किया है. अब हम बड़े आनंदसे उक्त महोदयवरों जिदने धन्यवाद दें उतनेही थोडे हैं. इन महास्मा- पुरुपने इस भुमंढठम अवतार लेकरके शास्रका पुनरुज्जीवन किया है अथमतः इन्होंने “न्यायप्रकूश” भ्ेथ निमोण क्षरक्े न्‍्यायशार्के भेमियोंकी न्‍्यायशार्रोक्त प्रमाण प्रमेय ऐसे मुबोध करदियेहेंक्कि, केवटभापाजाननेदाके समस्त जिज्ञाहुजन अनायासतसेही न्यायशारूगे परेंगठ होसकत हैं और “आत्तमपुरण” ग्रंथक्ा भाषांदर करके उपनिपदाका संपूर्ण अर्थ साधारण छोकोकी करवल्मामठकबत्‌ सुठभ कर- दिपाहै. और वह गीता “गूढाथदीपिका” 'भापादीका विर्माणकरके समरेत शाखमिदावकी सर्व छोक्षोंके सर्थ सुठभ फरदिया है और “तत्तवा




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