तारन त्रिवेणी | Taran Triveni

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Taran Triveni by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्यक्तस्य जल शुद्ध ; संपूर्ण सर पूरित । स्नान पियत गणधरन, मान सरनंत ध्रव॑। [ ग्यारद ] सम्यदशन रूपी निसमे, भंग हुआ है नीर अगम्प। ऐसा है वह परम जअद्ष फा, भव्यो | सरवर अविचल रम्य। मद्दा मुनीश्रर श्री गणधर जी, जिनकी शरण अनेषों ज्ञान। इस सर मे दी अपगाहन कर, करते इसका ही जल पाना




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