तारन त्रिवेणी | Taran Triveni
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
544 KB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्यक्तस्य जल शुद्ध ;
संपूर्ण सर पूरित ।
स्नान पियत गणधरन,
मान सरनंत ध्रव॑।
[ ग्यारद ]
सम्यदशन रूपी निसमे,
भंग हुआ है नीर अगम्प।
ऐसा है वह परम जअद्ष फा,
भव्यो | सरवर अविचल रम्य।
मद्दा मुनीश्रर श्री गणधर जी,
जिनकी शरण अनेषों ज्ञान।
इस सर मे दी अपगाहन कर,
करते इसका ही जल पाना
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