सब कुछ निस्पन्द है | Sab Kuch Nispand Hai

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सब कुछ निस्पन्द है - Sab Kuch Nispand Hai

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नारायण लाल परमार - Narayan Lal Parmar

Add Infomation AboutNarayan Lal Parmar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
बाँस बन हूं में राग भी हूं, नाग भी हूँ बाँस बन हूँ मैं चिरइया की चहकनों के जानता हूँ भेद । कभी पुरवा पास आकर वाँचती है वेद । जेठ दहके, पूस चहके पर मगन हूं मैं । यदि गिलहरी करे खड़ खड़ | या कि आए तेज अंधड़। भहीं बिखरा, अधिक निखरा बस सघन हूँ में । नहीं जाती हंसी मेरी और वाहें कसी मेरी । दुपहरिया भर. करे हर हर चिर लगन हैं मैं । स॒द कुछ निस्पन्द है | २१




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now