सब कुछ निस्पन्द है | Sab Kuch Nispand Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
825 KB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बाँस बन हूं में
राग भी हूं,
नाग भी हूँ
बाँस बन हूँ मैं
चिरइया की चहकनों के
जानता हूँ भेद ।
कभी पुरवा पास आकर
वाँचती है वेद ।
जेठ दहके,
पूस चहके
पर मगन हूं मैं ।
यदि गिलहरी
करे खड़ खड़ |
या कि आए
तेज अंधड़।
भहीं बिखरा,
अधिक निखरा
बस सघन हूँ में ।
नहीं जाती
हंसी मेरी
और वाहें
कसी मेरी ।
दुपहरिया भर.
करे हर हर
चिर लगन हैं मैं ।
स॒द कुछ निस्पन्द है | २१
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