सब कुछ निस्पन्द है | Sab Kuch Nispand Hai

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Sab Kuch Nispand Hai by नारायण लाल परमार - Narayan Lal Parmar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बाँस बन हूं में राग भी हूं, नाग भी हूँ बाँस बन हूँ मैं चिरइया की चहकनों के जानता हूँ भेद । कभी पुरवा पास आकर वाँचती है वेद । जेठ दहके, पूस चहके पर मगन हूं मैं । यदि गिलहरी करे खड़ खड़ | या कि आए तेज अंधड़। भहीं बिखरा, अधिक निखरा बस सघन हूँ में । नहीं जाती हंसी मेरी और वाहें कसी मेरी । दुपहरिया भर. करे हर हर चिर लगन हैं मैं । स॒द कुछ निस्पन्द है | २१




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