आगमवाणी भाग - 1 | Agamavani Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्-४ विधार [ ७» 1
इसी प्रझार सामान्य पचेम्द्रितियंच झौर निर्ट तियय पपचे-
स्रिपतियंच हात 6 ॥८६॥ यानिमती पचेन्द्रियवियेच-
मिथ्याध्टि और सासादन गुणस्थान में पर्याप्त और अपयाप्त
डोते ह ॥८७॥ सम्पम्मिथ्पार्वश, अमयत और सयवामयत
मुशस्थान म॑ नियम से पर्याप्त हाते हैं ॥८८॥ मामान्प से
मनुष्य मिश्यादष्ट, सासादन और असयत गुणस्थान में
पर्याप्त भोग अग्र्या दांत हं॥८६॥ सम्पम्मिथ्यादष्टि,
मयतासयत अर सत्र सयत गुणस्वानों म नियम से पर्याप्त होत
है ॥६०। *सी प्रसार निटे तिपर्याप्त मनुष्य दोते £॥६१॥
मनुष्य स्त्रियाँ मिख्याह्ष्टि और सासादन शुणस्वान में
पर्याप्त और भपयाप्र होती दे ॥६२॥ सम्पम्मिथ्याद॒ष्ठि, शस-
यत सयवासयतव भौर सत्र सयत गुण स्थानों में नियम से पर्याप्त
होती हैं ॥६१॥ सामान्य से टेय मिथ्यारष्टि, सासादन पर
भ्रसयत गुणस्थान म पर्याप्व भर अपरयाप्त होते ४ ॥६४॥
* सम्यम्मिध्याइप्टि मुणस्थान में नियम से पर्याप्त द्ोते दे ॥६४॥
मयनगासी, व्यतर भर ज्योठिपी दव भौर समस्त दरिया मिथ्पा-
दृष्टि भौर सासादन गुणस्थान में पर्याप्त और अपर्यात्र होती
६॥६६॥ मम्पम्मिथ्यादृष्टि और असयत गुणस्थान में नियम से
पर्याध दोवी ६॥६७॥ सोधर्म स्वर्ग से लेकर ग्रेयेयर तक ऐ देद
मिथ्याहृष्टि, सामादन भौर असयत शुटास्वान में पर्याम भर
अ्रपयाप्त दोत दें ॥६८॥ सम्पग्मिथ्यादृष्टि ग्रुणम्पान में नियम से
परपात्ल ते है ॥६६॥ तय भड्॒दिशों से सेरर सपर्पिसिद्धि व
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