द्रव्यानुयोग तर्कणा | Dravyanuyog Tarkna
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री परमात्मन नमः |
प्रस्तावना-
---+२२३२ए०---+ ह्च्हलकर्
विदित हो कि अनादिकालीन सर्वोत्तम जैन धर्मगें सम्यर्दुर्शन; सम्यग्शान और सम्यरू चारित्र रूप
रत्नत्नयके समुदायको मोक्षकी आ्राधिक प्रति कारणता है। इसमें भी सम्यर्द्ीन अधान है । वर्योंकि,
उसके बिना ज्ञानको और सम्यग्शानके बिना चारित्रको सम्यक् पदकी प्राप्ति नहीं होती है | बह
सम्यग्द्रीन जीव, पुदंगल, धर्म, अधर्म, आकाश तथा काछ इने पद् द्रयोंके यभार्भ खरूपको जान-
कर उसमें श्रद्धा (विश्वास ) करनेसे होता है | अतः सिद्ध हुआ कि मोक्षामिद्ापी जनोंको सवैतः
प्रथम पद द्रयोंका शान करना अत्यन्त आवश्यक है । वह शान अग्तिम द्ब्यानुयोगसे होता है ।
इसी कारण पूज्य प्रुरुषोंने द्रब्यानुयोगके शानकी प्रशंसा मुक्तकंठ होकर की है और इसके अभ्यास
करनेबाढोंको उत्तम कहा है ॥
प्राचीन आचायें और बुद्धिमान गृहस्यरज्ञोने अपरिमित आपत्तियों और परिश्रमोंक्ों सहम करके
परोपकारबुद्धिस इस विषयके सहसों अन्थोंकी रचना की थी | परन्तु विकराछ कलिकालके अभावसे
जीवोंके आयु, बछ, बुद्धि तथा सद्धमंकी भरद्धा आदियें म्रति समय होती हुई रंदता, प्रमाद और ब्रि-
प्रयामिल्पिताकी ब्रद्धि एव दुशेंकी दुष्ट।ता आदिसे अनके अन्ध तो निरादरपूर्वक नष्ट होगये और
बहुतसे तहाकोंदार कुफक और मूखोंके अधिकारमें रहनेसे जीर्ण हो रहे हैं, मिनका कि सूचीक बिना
पता भी नहीं छगता । यह् अत्यन्त खेदका विषय है ।
तथापि दिगम्बर सप्रदायमें समयसार, अबचनसार, पंचालिक्राय, प्रमात्मप्रकाश, राजवात्तिक,
छोकवार्सिक, प्रमेयक्रमठमार्तण्ड, न्यायकुमुदचल्धोदय, अष्टसहसी, आप्तपरीक्षा, पंचाध्यायी सटीक
द्ब्यसंग्रह, नयचक्र, सप्तमंगर्तरगिणी आदि और श्रेतम्बर संग्रदायमें संमिवितर्क, पोडशक, साद्वाद-
रलाकराबंतारिका, खाद्बादमंजरी, तस्वार्थाषिगमभाष्य आदि अनेक अन्य यो प्रचारमें आरहे है
उनसे संतोष है । ?
श्ेताम्बर संप्रदायके उक्त अन्धोंमे _येधार्म नामका धारक यह ४ द्रब्याज्ञयोगतर्कणा ” नामक
शास्र भी एक है । इसके कर्चा तंप्रोगच्छगगनमण्डल्मार्सण्छ शीविनीतसागरनीके शुस्य शिष्ण
द्रव्यविशननागर सकटगुणसागर श्रीभोजसामरजी हैं। उक्त महात्माने अपने अवतारसे किस
बसुधागंडढको मंडित किया यह शीत्रतामें निश्चित न होसका । समयमे विषय 907०
शी बाचकमुख्य
श्रीमैशेविजयोपाध्यायजीविरदित्त अल्यशुणपदाय भाषाविवरणके अनुसार इस प्रद्ृत शा
संकलन करनेसे अनुमान किया जाता है कि विक्म सै० १५०७ है स्॒प्रकृत शास्रकां
पीडे न््ं
अन्य रचा है ॥ हे किसी समय इन्होंने यह
वा उजत- सलर रतन कल ननल
६ १ ) श्वताम्थर संप्रदायके प्रचदित अन्योके 71 कन्यनन+--नननननन9-+++++5
पर] कि सके नाम उपस्थित नहीं थे, इस छिये बडे जाम हि
(३) तपोगच्छकी एक दो पत्नोडे फाव् देखी, उससे को
े डावओ देखी, हा
(३ ) इनके नामक्े स्परणार्व काझीमे एक सिवाय इनका तथा इनके शुरुतनोड़ा वर्णन नहा मिछा।
नास्वरपाठ्शाडा €।
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