सप्तभङ्गीतरागिणी | Saptabhangitaragini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कु]
इस भड़ार है “जैसे तृतीय धतुर्ध महोंमें पुनरफ़िदोपक्या भमार उनके विक्तप्रण बोध
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रद नास्दित्व' दशा सप्तम स्पादस्ति मास्मि चारक्तस्यशां महोंक्रे साथ पुनर्सफ्षे
होश नहीं है | क्योंकि अलित्विश्विद नासिसवप्ररपरकरोभअनकठा तृतीय मर्मे दे ।
खऔर हस्ने झो नूतन मह सिद्ध किया है उसमें ससित्वनालिखको विपरीत कमसे सोमित
मालिलसट्टित अश्वि्पक्रारकशोपजमकठा हैं. इस धडार विशेषणविश्ेप्ममातरक्की बिपरीतठा
दोगेस शोनों मश्ोंसे उसभ हानोंमें समाद भाऊरता नहीं है । पेमेद्दी सप्तम मह
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सिद्धि प्राप्त होती है. न कि सपमझी दि ऐसी श्ड्टा करो !
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दीये! । गधिगुडकादुजाएकाशुक़वे पानके इस्पाविभतिपत्तिदत् ) पद्रमुत्तरक्रापि बोष्पम ।
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झीर सैतुर्ष महसे अवक्तम्पत्वरूप पृथक पर्मकी प्रधानता है इस डिये इन दोगोंक्रे झमे
दब्डी धश्ा मी हो सकती गर्गोकि भगकम्पतरूप धर्म भलि नासिते विरक्षण पदार्थ है|
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सिद्ध दै येसेद्दी पेरकप छादिसे लसस््त्वमी अनुमबतिद्ध द झीर केश्ड अमस्यमी बसुका
स्वरूप भहीं है. स्मोंकि अेडपेससूप भाहिसे उसके सस्बड्ीभी प्रसीति सिद्ध ई । झऔीर
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कसर दबा हेगड़े संयोगसे दब्यसे एच अपूर्द मिश्र जातिका पानक रस उसपर शोता है
०-८ ललारलरका ए न्नप न 44८०2 4८
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शालि न. ६ म्याइपचस् एफ. ७ माह, ८ पदा, ५ अवध्यस्प, ३० झपने, १६ अजुभक, १९ अरे
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