सप्तभङ्गीतरागिणी | Saptabhangitaragini

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Saptabhangitaragini by विमल दास - Vimal Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु] इस भड़ार है “जैसे तृतीय धतुर्ध महोंमें पुनरफ़िदोपक्या भमार उनके विक्तप्रण बोध जनक होतेसे माना हे पसेह्री जिपरीद कमसे नालित्य अस्विस्द इस दृगकू मठ्की तेगा सासिसदमम्िस्शसशित अगक्ृब्पलप्रतिपादक इस पृथक मश्टछी सिद्धिगे तृतीय स्पाद- रद नास्दित्व' दशा सप्तम स्पादस्ति मास्मि चारक्तस्यशां महोंक्रे साथ पुनर्सफ्षे होश नहीं है | क्योंकि अलित्विश्विद नासिसवप्ररपरकरोभअनकठा तृतीय मर्मे दे । खऔर हस्ने झो नूतन मह सिद्ध किया है उसमें ससित्वनालिखको विपरीत कमसे सोमित मालिलसट्टित अश्वि्पक्रारकशोपजमकठा हैं. इस धडार विशेषणविश्ेप्ममातरक्की बिपरीतठा दोगेस शोनों मश्ोंसे उसभ हानोंमें समाद भाऊरता नहीं है । पेमेद्दी सप्तम मह न्याठस्ति नात्ति घारक्तस्प् के सा विपरीत भ्र्मात नालिस्त भसिस्थ इस उमयसहित भरकब्पत्पप्रतिपठक बिर्क्ण डोपजनक भक़्झी सिद्धि होनेसे सब मज़ीकी सिद्धि प्राप्त होती है. न कि सपमझी दि ऐसी श्ड्टा करो ! झश्राहु' । दतीयेप्रशित्दनाशित्योमपम्स प्रषानत्यम्‌ । अठुर्ये आदक्तम्यस्वर्पशमो- म्हरघेदि मे ठयोरमेद्रा/का । श्रवक्तम्पत्व॑ चालिस्दनालिलजिद्स्मम्‌ । धारि सक््यमेर बस्तुनस्लरूर्प, शरम्पपादिमिस्सक्स्पेव पररुपारिमिरसस्दम्पापि म्रतिपे 1 माप्यसक्थमेद । सवरुपारिभिस्सरथम्पापि प्रतीतिसिद्धलातू । नापि ददुसपमेष, धवुभयव्रिछश्वणस्तापि जाय म्वस्ख बस्तुमोमुमूथ्मानखात, ! यया-शश्िगुड चातुर्शावश्यरिव्स्थोकर्र बात हि कैधछरपिगुदापपेशया जातम्वसत्तवेत पामकमिए्‌ सुन्दाइसुरसीति एतीपदे। मे भोमरविषठ प्रणस्वमेब बस्तुनस्कहपमिति माध्यम, अस्तुलि कशिरसस्थप्प कपश्विष्रसक्तम्प चप्र- दीये! । गधिगुडकादुजाएकाशुक़वे पानके इस्पाविभतिपत्तिदत्‌ ) पद्रमुत्तरक्रापि बोष्पम । धबा च विविक्तस्वभादानों सप्र्माणों सिद्रेशडदिपशसपपजिहासारिझ्सेम सप्मदिदघन- रूपा सप्तमज्ी सिद्धेति ॥ दो यहांपर उत्तर कड़े ई--दुपीब मद्में मशित्व माशिस्थ हस उमयड्डी प्रषानता है । झीर सैतुर्ष महसे अवक्तम्पत्वरूप पृथक पर्मकी प्रधानता है इस डिये इन दोगोंक्रे झमे दब्डी धश्ा मी हो सकती गर्गोकि भगकम्पतरूप धर्म भलि नासिते विरक्षण पदार्थ है| 4स्वमाजट्टी मस्तक स्वरूप महीं दे. बर्योक़ि जेसे स्रुरुूप शादिसे गस्ठुक्ा सत्य शनुमग सिद्ध दै येसेद्दी पेरकप छादिसे लसस्‍्त्वमी अनुमबतिद्ध द झीर केश्ड अमस्यमी बसुका स्वरूप भहीं है. स्मोंकि अेडपेससूप भाहिसे उसके सस्बड्ीभी प्रसीति सिद्ध ई । झऔीर सह असत्द पूतद उमयमी बस्खुका स्वरूप नहीं है क्योंकि उमयरुपसे डिशेक्ण अन्य अशीम भी बस्टुय स्वकृप समुमगठिद्ध है | जैसे दि शकरामे मरिष्र इछायत्री माग- कसर दबा हेगड़े संयोगसे दब्यसे एच अपूर्द मिश्र जातिका पानक रस उसपर शोता है ०-८ ललारलरका ए न्नप न 44८०2 4८ 4 हब रटतए ब्रमे्री प्रछि ३ उब्याद ३ तूतौद तडा इस मूतय, ४ लाकर ४ करि शालि न. ६ म्याइपचस् एफ. ७ माह, ८ पदा, ५ अवध्यस्प, ३० झपने, १६ अजुभक, १९ अरे >




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