अमृतायन | Amratayan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
192
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)न्योते अनन्त क्लेश
सहे द्रढ्व विन तकं।
जिज्ञासा उद्गाम [
तुमको कोठि प्रणाम।
मनरूपी भगवान् !
कसी प्राण की रास,
स्लोली अनन्त दृष्टि,
दिया विवेक विधान,
रच छी न्यारी सूप्टि।
जग के ईइवर वाम !
तुमको कोटि प्रणाम
अह रूप भगवान्
किए सत्य के खण्ड,
लखे सर््ड ही पूर्ण,
हुए खण्ड हित युद्ध
अन्त अतुष्ट अपूर्ण।
विक्ृत बने सब काम,
तुमको कोटि प्रणाम 1
उदासीन भगवात् |
निपट समन्वयहीन
मन की उठी प्रतीति,
जीवन की आधार
झूठ बनी सब प्रीति।
उलठा जग्र-परिणाम,
तुमको कोटि प्रणाम ।
मन अतीत भगवान्
पैठे अतर देश
हुई क्रिया सब बन्द,
» देखे नीरब रूप
टूटे जग के छंद।
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