अमृतायन | Amratayan

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Amratayan by विद्यावती कोकिल - Vidyavati Kokil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्योते अनन्त क्लेश सहे द्रढ्व विन तकं। जिज्ञासा उद्गाम [ तुमको कोठि प्रणाम। मनरूपी भगवान्‌ ! कसी प्राण की रास, स्लोली अनन्त दृष्टि, दिया विवेक विधान, रच छी न्यारी सूप्टि। जग के ईइवर वाम ! तुमको कोटि प्रणाम अह रूप भगवान्‌ किए सत्य के खण्ड, लखे सर््ड ही पूर्ण, हुए खण्ड हित युद्ध अन्त अतुष्ट अपूर्ण। विक्ृत बने सब काम, तुमको कोटि प्रणाम 1 उदासीन भगवात्‌ | निपट समन्वयहीन मन की उठी प्रतीति, जीवन की आधार झूठ बनी सब प्रीति। उलठा जग्र-परिणाम, तुमको कोटि प्रणाम । मन अतीत भगवान्‌ पैठे अतर देश हुई क्रिया सब बन्द, » देखे नीरब रूप टूटे जग के छंद।




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