कर्ण पर्व | Karn Parv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंब्यायूर ] (बा क आय देते खुला होगे चावि महारयम जनमेजय उवाच--आपगेय॑ हत॑ श्लुत्वा द्रोणं चापि महारथम्‌ -। आजमगाम परामाति बृद्धों राजाम्बिकासुतः महा भारत ॥ श्द ॥ स श्रुत्वा निहतं कर्ण दुर्योधनहितेषिणम्‌.. 1 कथ्थ द्विजवर प्राणानधारयत दुःखितः ॥ १९ ॥ यस्मिश्जयाशां पुत्राणां सममन्यत पार्थिवः 1 तस्मिन्हते स कोरव्यः कथ्थ प्राणानधारयत्‌ 9 २० ही 0०५ + मन्ये है] / ५ टुमरं तद॒हं मनन्‍्ये नृणां कृच्छेडपि वर्तताम । यत्र कर्ण हतं श्र॒ुत्वा नात्यजज्जीवैत ज्ृपः ॥ २१ ॥ तथा शान्तनवं बुद्ध बहान्वाहीकमेव च । द्रोणं च सोमदत्त च भूरिश्रवसमेव च ॥ २२ ॥ तथैब चाइन्यान्सुहृदः पुत्रान्पोत्रांश्र पातितान्‌। श्रुत्वा यन्नाजहात्म्राणांस्तन्मन्ये दुप्करे द्विज ॥ २३ ॥ एतन्मे सर्वमाचक्ष्व विस्तरेण महामुने । न हि तृष्यामि पूर्वेपां शण्वानश्वरितं महतू ॥ २४ ॥ इति श्रों मद्याभारत करोणपर्वणि जनमेजयबाक्य नाम प्रषमोडष्यायः ॥ १ ॥ और उन्होंने राजा घृततराष्ट्र को कुरुक्षेत्र के युद्ध का सब वृत्तान्त कह सुनाया) १ ४1१७॥|राजा जनमेजय ने घह्ा-दे ब्रह्मन्‌ ! महात्मा भाष्म पितामह और यशस्त्र द्रेणाचाय की मृत्यु होने की सूचना पाकर राजा धृतराष्ट बहुत ही चिंन्तित हो रहे थे । अब दुर्योधन के द्वितेषी कर्ण की, जिनके बाहु-वल और वीय के आश्रय वे अपने पुत्रें! के विजयी होने की आशा रक्खे हुए थे, मृत्यु सुनकर उनको क्‍या दशा हुई द्वोगी £ वे कैसे जीते रहे होंगे ! ऐसे शोक-समाचार को छुन- कर भी यदि उनके प्राण नहीं निकले तो, में समझता हूँ, मनुष्य अत्यन्त कष्ट की दशा में भी किसी प्रकार शरीर को छोड़ना नहीं चाइता॥ १ ८।२ १॥बृद्ध राजा घ्ृतराष्ट्‌ अपने प्रिय और संग भाष्म पितामह, द्रोण, कर्ण, बाहीक, सोमदत्त, भूरिश्रवा तया अन्य बहुत से घुद्दत्‌-पुत्र-पौत्र आदि की सृस्यु का समाचार छुनकर भी जीते रहे,इससे जान पड़ता है कि ग्राण छोड़ देना बहुत द्वी दुष्कर है। दे तपोधन ! अब आप सत्र समा- चार आदि से अन्त तक विस्ताएपूर्वक कह्चिए। अपने पूर्वपुरुषों के प्रण्य चरित्र खुनने की मेरी उत्कण्ठा किसी प्रकार मी नहीं मिटती॥२२।२४॥ क॒र्णपर्व का पहला अध्याय समाप्त हुआ ॥ १ ॥ 4. अथ द्वितीयोउष्यायः ॥ २३ ॥ ०. वैशम्पायन जाच--हँते कर्ण महाराज निशि गावल्गगिस्तदा .! दीनो ययो नागपुरम-्वेवातसमे्जबे 1 १0 स॒ हास्तिनपुरं गला भृशसुद्दिम्चेतनः | _ गगाम छ्तराष्ट्रवक्षयं भ्रक्षीणवान्धवम्‌ ॥९॥ ॥15५3॥ दूसरा अब्याय ॥ २ ॥ वैशग्पायन ने कहा के हे राजा जनमेजय ! महा- | बली कर्ण की मृत्यु हो जाने पर महात्मा सन्लय उस है '४३२०२०२२०२२०२२०२००००२०२००२२२०२::०००८०२०२:०२०००००००:०८२००००८०:००२००००::२००८८०००-:०:७ ्स्स्स्स्ज्ज्ड 22७४७७४४४:४७७०७३३४




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