कर्ण पर्व | Karn Parv
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
547
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंब्यायूर ]
(बा क आय देते खुला होगे चावि महारयम
जनमेजय उवाच--आपगेय॑ हत॑ श्लुत्वा द्रोणं चापि महारथम् -।
आजमगाम परामाति बृद्धों राजाम्बिकासुतः
महा भारत
॥ श्द ॥
स श्रुत्वा निहतं कर्ण दुर्योधनहितेषिणम्.. 1
कथ्थ द्विजवर प्राणानधारयत दुःखितः
॥ १९ ॥
यस्मिश्जयाशां पुत्राणां सममन्यत पार्थिवः 1
तस्मिन्हते स कोरव्यः कथ्थ प्राणानधारयत्
9 २० ही
0०५ + मन्ये है] / ५
टुमरं तद॒हं मनन््ये नृणां कृच्छेडपि वर्तताम ।
यत्र कर्ण हतं श्र॒ुत्वा नात्यजज्जीवैत ज्ृपः
॥ २१ ॥
तथा शान्तनवं बुद्ध बहान्वाहीकमेव च ।
द्रोणं च सोमदत्त च भूरिश्रवसमेव च
॥ २२ ॥
तथैब चाइन्यान्सुहृदः पुत्रान्पोत्रांश्र पातितान्।
श्रुत्वा यन्नाजहात्म्राणांस्तन्मन्ये दुप्करे द्विज ॥ २३ ॥
एतन्मे सर्वमाचक्ष्व विस्तरेण महामुने ।
न हि तृष्यामि पूर्वेपां शण्वानश्वरितं महतू ॥ २४ ॥
इति श्रों मद्याभारत करोणपर्वणि जनमेजयबाक्य नाम प्रषमोडष्यायः ॥ १ ॥
और उन्होंने राजा घृततराष्ट्र को कुरुक्षेत्र के युद्ध का
सब वृत्तान्त कह सुनाया) १ ४1१७॥|राजा जनमेजय ने
घह्ा-दे ब्रह्मन् ! महात्मा भाष्म पितामह और यशस्त्र
द्रेणाचाय की मृत्यु होने की सूचना पाकर राजा
धृतराष्ट बहुत ही चिंन्तित हो रहे थे । अब दुर्योधन
के द्वितेषी कर्ण की, जिनके बाहु-वल और वीय के
आश्रय वे अपने पुत्रें! के विजयी होने की आशा रक्खे
हुए थे, मृत्यु सुनकर उनको क्या दशा हुई द्वोगी £
वे कैसे जीते रहे होंगे ! ऐसे शोक-समाचार को छुन-
कर भी यदि उनके प्राण नहीं निकले तो, में समझता
हूँ, मनुष्य अत्यन्त कष्ट की दशा में भी किसी प्रकार
शरीर को छोड़ना नहीं चाइता॥ १ ८।२ १॥बृद्ध राजा
घ्ृतराष्ट् अपने प्रिय और संग भाष्म पितामह, द्रोण,
कर्ण, बाहीक, सोमदत्त, भूरिश्रवा तया अन्य बहुत से
घुद्दत्-पुत्र-पौत्र आदि की सृस्यु का समाचार छुनकर
भी जीते रहे,इससे जान पड़ता है कि ग्राण छोड़ देना
बहुत द्वी दुष्कर है। दे तपोधन ! अब आप सत्र समा-
चार आदि से अन्त तक विस्ताएपूर्वक कह्चिए। अपने
पूर्वपुरुषों के प्रण्य चरित्र खुनने की मेरी उत्कण्ठा किसी
प्रकार मी नहीं मिटती॥२२।२४॥
क॒र्णपर्व का पहला अध्याय समाप्त हुआ ॥ १ ॥
4.
अथ द्वितीयोउष्यायः ॥ २३ ॥
०.
वैशम्पायन जाच--हँते कर्ण महाराज निशि गावल्गगिस्तदा .!
दीनो ययो नागपुरम-्वेवातसमे्जबे
1 १0
स॒ हास्तिनपुरं गला भृशसुद्दिम्चेतनः |
_ गगाम छ्तराष्ट्रवक्षयं भ्रक्षीणवान्धवम् ॥९॥
॥15५3॥
दूसरा अब्याय ॥ २ ॥
वैशग्पायन ने कहा के हे राजा जनमेजय ! महा- | बली कर्ण की मृत्यु हो जाने पर महात्मा सन्लय उस
है
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