मेरी प्रिय कहानिया | Meri Priy Kahaniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टूटे हुए २३
जाति के हैं, एक ही शहर के, एक भाषा-मापी 1
तब वह कितनी भ्रसन्न हुई थी।
मुझे आए थोड़े ही दिन हुए थे। आठवी स्ट्रीट पर एक फ्लैट में टिका हुआ
था। एक साथी और था। सस्ता मकान था, पुराना, गन््दा, पर और कोई उपाय
मे था, सात-भर के कांद्र कट पर हस्ताक्षर कर छुका था। बाकी सभी किरायेदार
भारतीय थे, दी पाकिस्तानी1 सारे दिन हीग, वारियल के तेल और विविध
मसालों की गन्ध गलियारों में मंडरामा करती थी !
एक दिन लाइब्रेरी से लौटकर देखता हूं कि घर के आगे उसकी गाड़ी छड़ी
है। लाल रंग की स्पोर्ट्स कार। घबरा गया, सीफे पर सोता था और जाने से
पहले सारे कपड़े इधर-उधर बिखेर गया था। पहली प्रतिक्रिया हुई भाग पड़े होने
की, पर मन कड़ा कर अन्दर बया। वह सोफ़े पर बैठी थी। मेरे कपड़े वहा नहीं
थे, पास में ऊपर वाली मिसेश नायक बैठी थी, मिसेज़ नायक के पति उसके पत्ति
के असिस्टैण्ट थे । वह चाय पी रही थी, उसके हाथ मे जो चाय का ध्याला था,
वह सावुत का डिब्बा खरीदने पर मुफ्त मिला था, मैचिंग प्लेट अभी नही थी ।
बह मुझे देखकर बोली : “इतनी-इतनी देर लाइब्रेरी में बेंठे रहते हो, एक
बार जो धीमार पढ़े तो फिर पनप नहीं पाओगे 1”
मैंने उत्तर में कुछ वही कहा, किताबें मरेज्ञ पर रखकर कुर्सी छीचकर बैठ
गया ।
तुम्हें खाने पर कई दिन से बुलाना चाहती थी | इस शनिवार को भा
सकोगे 2?”
/प्ि्फे इसीलिए इतनी तकलीफ़ की ? ” मैंने कहा।
पहली वार लगा कि उसके यहां बँठने से कमरे का सारा शेवीपन फोकस
में आ गया है। अंगूर की बैलों वाले छापे का हरा वालपेपर, घूल-मरेव्लास्टिक'
के पदें, ढी ला-डाला सोफा ।
बहू उठ णड़ी हुई, प्याले को मेज पर रखती हुई वोली : “तो शनिवार को
मैं लेने आऊंगी ।”
“नही, नहीं, मैं स्वयं मा जाऊगा ।
“स्वयं नहीं आ सकोगे । काफी दूर घर है, रास्ता भो आसार
“टैक्सी से***” मैंने कहा ।
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