स्थानादृगमृत्र भाग ३ | Sthananga Sutram Bhag-3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
914
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about घासीलाल जी महाराज - Ghasilal Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुघा दीका स्था०४ उ०३ सु०२ पशक्षिदृप्टान्तेन चतर्विधपुरुपज्नातनिरूपणम ९
ध्ल्य्य्य््य्््ल्ल््य्य्ल्य्ख््ल्ल््््ाली अल 6 ् _>ल्टच््ैलनल्ललचवलन्चथ्श्श््_््ल
टीफ़ा--“ चत्तारि पक्खी ?-लादि-स्पष्टअू, नवर-रुतं-शब्द!, रूपे च
सबपां पक्षिणां सव॒त्वेव, अत एनदुद्रय विशिष्टमेव शह्यते, एवं च रुत-श्रवणा55हछ
दकी मनोन्नशव्दस्तेन सम्पन्नो-युक्त, एकः पक्षी भ्॒ति, परन्तु नो रूपसस्पस्न।-
सुन्दराषड्कारों न भति, कोडशिलवतू, इति प्रथमों भइः १।
तथा--पुरुपजात चार हैं, कोई एक तो एसा होता है जो, अपने
छिप्त में प्रीति को प्रविष्ट करता है, पर-परके चित्त में प्रीति को
प्रथिष्ट नहीं करता है-१ कोई एक ऐसा होता है जो परचित्त में प्रीति
को स्थापित करता है, अपने चित्त में नहीं-२ कोई एक ऐसा दछोता है
जो अपने चित्त में प्रीति को स्थापित करता है, और-परचित्त में भी-३
और-कोई एक अरने चित्त में मी और-परचित्त में-भी स्थापित नहीं
करता हे-४-४
दीकार्थ--इस खत्र में पक्ली का दृष्ठान्त देकर एरुप चार प्रकार
प्रकट किये गये हैं उस सम्बन्ध में ऐसा कथन जानना चाहिये छि--
रुन, छाव्द, आवाज, बोली पश्चियों का होता है, और रूप भी पक्षियों
का होता है, परन्तु-यहां जो ये दो बातें प्रगण की गई हैं, इस से ये
दोनों चिशिए्ट रूप से ग़द्दीत हुवे हैं। तथा च-जो मनुष्यों के श्रोत्रे-
न्द्रियो का आनन्ददायक होतारईे ऐसा मनोज्ञ चाव्द और जो रूप रुचिर-
सुन्दर आहार बाला होता है उस्ते ऐसा सनोज्ञ झूत और-रूप से सम-
झना चाहिये। इस पक्ार समझ कर फिर इस दृष्ठान्त खत का इस
>> कक 482 कान 28-40: 7; 000 ली 2५ बद5 ०४२6 मम 5८० कक
सुकुषना था अमाशुं थार अहर पणु पे 8-९१) $४ खे5 धुरुष
खेवे छाय छे 3 ० पेतानचा थवित्तमां ते। प्रीति (त्पन्न बरी श्र छ पणु
परना चित्तमा औति 6त्पन्न इरावी शबते। नथी (२) झछ पुरुष परभा शीति
हत्पन्न उराबी श्र छे पु पाताना शित्तमा भीतिन स्थापित ४री शह5्रते
नथी. (3) डेछ झओे+ पुरुष पेताना खने परता, जनन््मेना जव्ित्तमां प्रीति
स्थापित री शक छे (3) डेप पुरुष चेनाना सिन्तना चणु भीतित स्थायित
3री श्ते। नथी जने परना थित्तमा पणु प्रीतिन स्थापित ४री शत] नथी
टैडाथ--पछेता सूजभा पक्षीचु हेशान्त जापीने यार पप्भारता भुरुषे। ४० ४२-
वाभा खान्या छे, पक्षोओ्रामां जपा ( माली, शण्द ) ब्यभे ३५ णन्नेने।
सहुभाव डाय छे परन्तु मर ते णन्ने जागताने विशिष्ट ३पे अरूण धर
पाभा खावेतष छे नम “शेप? यह्थी खेवुं सभण्ट्चु व्नेओ भनवुष्ये(नी
दश्नि जमे तेबु भनेश ( झूथिर ) इप लने शण्ई ? पदथी भ्ुष्थे।नी
3 ज्ट्वियने भनाश क्षाणे खेने। भधुर जग-८ भ्रूण थपे। जे,
स्--२ नकल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...