स्थानादृगमृत्र भाग ३ | Sthananga Sutram Bhag-3

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Sthananga Sutram Bhag-3 by घासीलाल जी महाराज - Ghasilal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुघा दीका स्था०४ उ०३ सु०२ पशक्षिदृप्टान्तेन चतर्विधपुरुपज्नातनिरूपणम ९ ध्ल्य्य्य््य्््ल्ल््य्य्ल्य्ख््ल्ल््््ाली अल 6 ् _>ल्टच््ैलनल्ललचवलन्चथ्श्श््_््ल टीफ़ा--“ चत्तारि पक्खी ?-लादि-स्पष्टअू, नवर-रुतं-शब्द!, रूपे च सबपां पक्षिणां सव॒त्वेव, अत एनदुद्रय विशिष्टमेव शह्यते, एवं च रुत-श्रवणा55हछ दकी मनोन्नशव्दस्तेन सम्पन्नो-युक्त, एकः पक्षी भ्॒ति, परन्तु नो रूपसस्पस्न।- सुन्दराषड्कारों न भति, कोडशिलवतू, इति प्रथमों भइः १। तथा--पुरुपजात चार हैं, कोई एक तो एसा होता है जो, अपने छिप्त में प्रीति को प्रविष्ट करता है, पर-परके चित्त में प्रीति को प्रथिष्ट नहीं करता है-१ कोई एक ऐसा होता है जो परचित्त में प्रीति को स्थापित करता है, अपने चित्त में नहीं-२ कोई एक ऐसा दछोता है जो अपने चित्त में प्रीति को स्थापित करता है, और-परचित्त में भी-३ और-कोई एक अरने चित्त में मी और-परचित्त में-भी स्थापित नहीं करता हे-४-४ दीकार्थ--इस खत्र में पक्ली का दृष्ठान्त देकर एरुप चार प्रकार प्रकट किये गये हैं उस सम्बन्ध में ऐसा कथन जानना चाहिये छि-- रुन, छाव्द, आवाज, बोली पश्चियों का होता है, और रूप भी पक्षियों का होता है, परन्तु-यहां जो ये दो बातें प्रगण की गई हैं, इस से ये दोनों चिशिए्ट रूप से ग़द्दीत हुवे हैं। तथा च-जो मनुष्यों के श्रोत्रे- न्द्रियो का आनन्ददायक होतारईे ऐसा मनोज्ञ चाव्द और जो रूप रुचिर- सुन्दर आहार बाला होता है उस्ते ऐसा सनोज्ञ झूत और-रूप से सम- झना चाहिये। इस पक्ार समझ कर फिर इस दृष्ठान्त खत का इस >> कक 482 कान 28-40: 7; 000 ली 2५ बद5 ०४२6 मम 5८० कक सुकुषना था अमाशुं थार अहर पणु पे 8-९१) $४ खे5 धुरुष खेवे छाय छे 3 ० पेतानचा थवित्तमां ते। प्रीति (त्पन्न बरी श्र छ पणु परना चित्तमा औति 6त्पन्न इरावी शबते। नथी (२) झछ पुरुष परभा शीति हत्पन्न उराबी श्र छे पु पाताना शित्तमा भीतिन स्थापित ४री शह5्रते नथी. (3) डेछ झओे+ पुरुष पेताना खने परता, जनन्‍्मेना जव्ित्तमां प्रीति स्थापित री शक छे (3) डेप पुरुष चेनाना सिन्तना चणु भीतित स्थायित 3री श्ते। नथी जने परना थित्तमा पणु प्रीतिन स्थापित ४री शत] नथी टैडाथ--पछेता सूजभा पक्षीचु हेशान्त जापीने यार पप्भारता भुरुषे। ४० ४२- वाभा खान्या छे, पक्षोओ्रामां जपा ( माली, शण्द ) ब्यभे ३५ णन्‍नेने। सहुभाव डाय छे परन्तु मर ते णन्‍ने जागताने विशिष्ट ३पे अरूण धर पाभा खावेतष छे नम “शेप? यह्थी खेवुं सभण्ट्चु व्नेओ भनवुष्ये(नी दश्नि जमे तेबु भनेश ( झूथिर ) इप लने शण्ई ? पदथी भ्ुष्थे।नी 3 ज्ट्वियने भनाश क्षाणे खेने। भधुर जग-८ भ्रूण थपे। जे, स्--२ नकल




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