हाफ़िज़ की गजलें | Hafiz Ki Gazalen

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Hafiz Ki Gazalen by शंकर माहेश्वरी - Shankar Maheshvari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5. कहाँ पुण्य के कार्य और मैं कहाँ इधर मद पायी देखो तो कितना अन्तर है इन दोनों राहों में। पीने से क्या रिश्ता-नाता संयम और नियम का कहाँ शुष्क उपदेश, कहाँ तो तंत्री की स्वर लहरी। छल के चोगों से, मठ-मस्जिद से मन हुआ विरागी मैं तो खोज रहा वह मन्दिर जहाँ वारुणी पावन। उसकी स्मृति से चली गई वे मधुर मिलन की बातें अब वे कहाँ कराक्ष, कहाँ वे मानवती के ताने। दुश्मन का दिल और मित्र के चेहरे में समता क्‍या कहाँ बुझा वह दीप, कहाँ यह जगमग करता सूरज देख प्रिया कौ चिबुक सेव सी, जहाँ कूप गहरा है कहाँ जा रहे हो यों ऐ दिल, इस पथ पर द्वुत गति से! तेरी ड्योढ़ी की मिट्टी, मेरी आँखों का काजल तब फिर यह दरबार छोड़ कर बता कहाँ मैं जाऊँ। “हाफ़िज्ञ से मत रखना प्यारे सुख-सपनों को आशा यहाँ कहाँ का चैन, कहाँ विश्राम, कहाँ की निद्रा। 25) के




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