सावय धम्मदोहा | Savayadhammadoha Vol-ii

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Savayadhammadoha Vol-ii by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माकुकथन प्रस्तुत पन्‍य के दर्शन प्रथम दार सुझे सन्‌ ३१०: में / कीऐव*के सेनगण भण्डार में हुए ये भोर उस प्रति पर से इस प्रथ का परिचय सन्‌ १९२६ में प्रशाशित (2४(७10876 ० 5णाऊरए: शाते शा4 1710 (६६ जा (7 ? & छाया में दिया गया था। उस परिचय से कई विद्वानों का ध्यान इस ग्रन्थ की ओर थआकर्षित हुआ और उस्रे प्रा झित करने के लिये मुझ पर आभ्रद्द दोने स्गा। विन्तु एक दी प्रति परसे इस का सम्पादन करने का मुझे साइस नहीं हुआ, इधसे टट्रना पडा | गले घर्ष इस प्रन्थमाला की नव ढाडी गई भौर तपसे प्रन्थ की भन्‍्य पोगियों की खोज में विश्वेषरुप से प्रगलशाल होना एटा) राग १९३० में दिन्दु सतानी एयसडिम्री, यू पी , के अष्यक्ष श्रेयुक्त ढे| ताराचन्द्ओ एम-ए , डी. फल , ने इस ग्र4 को देखने की इच्छा प्रकट की | ढिन्तु उस समय तऊ हमारे हाथ में इसकी उपर्युक्त एड्द्दी बढी प्रति थी और उसकी प्रथम कापीतयार की जा रही थी इससे पद भेत्ती नद्दी जा छऊा । धरे धरे अन्य प्रतियों का पता चत्य भौर उसी अनुघार इसका संशोधन द्वेता गया। अचतऊ हमें इसकी ग्यारह पोशियों का पता चला ६ तिनका परियय “सशोघन सामग्री ! में कराया गया है। पहले हमारा विचार अन्यम ला के अन्य प्न्यों के साशा इसका सम्पादन भी जग्रेगी में करने का या। किन्तु अनेक मित्रों व अथमाछा के सद्यायरों का आप्रह हुआ हि अपभ्रग्य भाषा के दुछ अन्य दिन्दों में भी सम्पादित होना चादिये ता कि हिन्दी सेक्षार में उक्त दोनों भाषाओं का सम्बन्ध स्पष्ट रूप से झलऊ जबे | तदनुसार इस अ्न्थ का सम्पादत द्विन्दी में करने दा निधय हुआ । आगे भ्रद्ादित द्वोने वाले अन्यों में भी अनेक प्रन्‍्यों का द्विन्दी में सम्पादन करने का विचार दै ।




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