प्राकृत भाषाओं का व्याकरण | Prakrta Bhasaon Ka Vyakarana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Prakrta Bhasaon Ka Vyakarana by आर. पिशल - R. Pishal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आर. पिशल - R. Pishal

Add Infomation About. R. Pishal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
अइत्यावशड्यक्‌ सूचना मेरा विचार था कि पिशल के इस 'प्राकृत भाषाओं के व्याकरण! का प्रूफ में स्वयं देखूँ , जिससे इसमें भूल न रहने पायें । किन्तु वास्तव में ऐसा न हो पाया। कई ऐसे कारण आ गये कि मैं इस अ्न्थ के प्रफ देख ही नहीं पाया । जिन ५, ७ फर्मों के प्रूफ मैंने शुद्ध भी किये, तो वे झुद्धियाँ अशुद्ध ही छप गई । पाठक आरम्भ के प्रायः १२५ पूष्ठों में प्राकृत', दशरूप', वाग्मटालूंकार' आदि शब्द उल्टे कौमाओं में बन्द देखेंगे तथा बहुत-से शब्दों के आगे--० चिह्न का प्रयोग # के लिए. किया गया है। यह अश्ुद्ध है और मेरी हस्तलिपि में इसका पता नहीं है | यह प्रफ-रीडर महोदय की कृपा है कि उन्होंने अपने मन से मेरी हिन्दी शुद्ध करने के लिए ये चिह्न जोड़ दिये। यह व्याकरण का अन्थ है, इस कारण एक शुद्धि-पत्र जोड़ दिया गया है। उसे देख और उसके अनुसार शुद्ध करके यह पुस्तक पढ़ी जानी चाहिए । पिशल ने गौण य को य्‌ रूप में दिया है। प्राझृतों में गीण यू का ही जोर है कृत का कय, गणित का गणिय आदि-आदि रूप मिलते हैं| अतः उसका थोड़ा बहुत महत्त्व होनेपर भी सर्वत्र इस य, की बहुलता देख, अनुवाद में यह रूप उड़ा देना उचित समझा गया । उससे कुछ बनता-बिगड़ता नहीं। मुझे प्रफ देखने का अवसर न मिलने के कारण इसमें जो अशुडियाँ शेष रह गई हों, उसके लिये मे क्षमा चाहता हूँ । स्वयं प्र न देख सकना, मेरा महान दुर्भाग्य रह | यदि में प्रफ देख पाता, तो अशुद्धियाँ अवश्य ही कम रह पाती । विशेष ध्यान देने की बात यह है कि संस्कृत में चाहे काय्ये लिखा जाय या कार्य, दोनों रूप शुद्ध माने जाते हैं, किन्तु विद्यान्‌ वेयाकरण व्यर्थ को आधी मात्रा भी बढ़ाने में सकुचाते हैं। इसलिए में काये लिखना उचित समझता हूँ, पाश्चात्य विद्वान्‌ भी ऐसा ही करते हैं। संस्कृत में हर वर्ण के साथ उसके वर्ग का अनुनासिक हैः, ञ, ण, न, म जोड़ा जाता है। मध्य-मारतीय आर्य-माषाओं के समय से इनका महत्त्व कम होने लगा | अब हिन्दी में अनुस्वार का महत्व बढ़ गया है, जो भनुचित नहीं कहा जा सकता | इससे लिखने की सुविधा और शीघ्रता होती है। किन्तु पिशक साहब ने अनुनासिकवाले रूप अधिक दिये हैं | ग्रन्थ में यदि कहीं, इस विषय की कोई गड़बड़ी हो, तो पाठक, पिशल के शुद्ध रूप विपयानुक्रमणिका तथा शब्दानुक्रमणिका को देखकर शुद्ध कर लें। उनका प्रूफ मैंने देखा है, सो उनकी लेखन-दौली पिशल की शैली ही रखी है | पिशल के मूल जर्मन-प्रन्थ में प्रूफ देखने में बहुत-सी भूलें रह गई हैं | इस ग्रन्थ का ढंग ही ऐसा है कि एक मात्रा हूटी, या छूटी तो रूप कुछ-का- कुछ हो गया । संस्कृत काये का रेफ हटा या छूटा तो उसका रूप काय हो गया और ध्यान देने का स्थान है कि काये, काय में परिणत होकर 'शरीर? का अर्थ देने लगता है। यह महान्‌ अनर्थ है | किन्त॒ राष्ट्रभापा हिन्दी के मूल्यवान्‌ ग्रन्थों और पत्रों




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now