ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका | Rigvedadibhashya Bhumaika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका  - Rigvedadibhashya Bhumaika

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati

Add Infomation AboutDayanand Saraswati

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सम ॥ कप हा २१ क्योंकि किसी देहघारी ने वेदों के बनानेवाले को प्ताज्ञात्‌ कमी नहीं देखा इस कारण से जाना गया कि वेद निराकार इंश्वर से ही उत्पन्न 'हुए हैं ओर उनको सुनते “सुनाने ही ग्रान पंये्त सब लोग चले आते हैं तथा अग्नि वायु आदित्य और भक्षिग इने चारों ' मनुष्यों की जैसे वादित्र को कोई बनावे था काठ की पतली को चेश कराने इसी प्रकार ईएवर ने उनको निमित्तमात्र किया था क्योंकि उनके ज्ञान से वेदों की डरस्पेत्ति नहीं हुई किन्तु इससे यह- जानना कि वेदों में जितने शब्द श्र और प्रम्बन्ध हैं वे प्व ईश्वर ने अपने ही ज्ञान से उनके द्वारा अ्कट किये हैं“. * | बेदानामुत्पत्ता कियास्ति वर्षाणि व्यतीतानि | भन्रोच्यते एको बन्द। पणएण बति। कोटयो5ह्ालत्ताणि द्विपञ्चाशत्सइस्राणिःनवशतानि पद्सपृंत्तिशता/वेन्ति (१६६०८४२६७६) वषाएणि वंयतीतानि सप्रसप्तत्तितमोय संवत्सरो बच्तेत इति वे-, दितव्यम्‌ | एतायन्स्येव वर्षाण वत्तेमानकल्पसपश्ेति-| कर्म 'विज्ञायते हझोताव-' न्टेब बर्षाए व्यतीतानीति । अन्राहास्यां जत्तेपानायां, सूष्ठो : वेबस्व॒तरय /सप्तुम- स्पांस्य पन्वन्तरस्पेदानी वत्तमानत्वादर्पात्पृव पणणा:मस्वन्तराणां व्यतीतत्वा ब्ति । तबथथा स्वायम्भव! स्वारोधिष ओचमिस्तापसो रेवतथाह्ुपोववसवतश्रति सप्तत पनवस्तथा सावएयादय आगापिन;' सप्नचते उंमालता १४: चतुदशव भवन्ति | तत्रेकसप्रतिथ्तुयुगानि हकेकस्प-मनो;-परिभाएं मंवर्ति | ते चर्करिम स्त्राक्मदिने १४ चतुर्ेशभुक्रमोगा भवन्ति |-एकसहस्तं १००० चातुर्यृगानि'्रा- हादिनस्य पारिमाणं मवाति ब्राहम्सा राग्रेरपि तावदेवःपरिषाणं विश्वेयम्र ।स्सप्ठ | बैत्तेगानस्य दिनसंज्ञास्ति प्रलयस्य च रात्रिसश्ेति | अस्पिस्त्राह्म॑दिने पट:मनव-; सतुब्यतीताः सप्तगस्य बेवस्वृतस्य वेत्तपानरय मनार हटा विशतितमाय केलिबत्तेत.। तश्रास्य वत्तेशनस्य-कलियुगस्पेतावन्ति 2६४७६ चत्वारि सहस्ताण नतशतान | पद्सप्तिश्व वर्षाण तु गतानि सप्तमप्ततितमोय संग्सरों बत्तेते यपधार्यो: विक्र-! | प्रस्यकोनदिशतिशत तयद्विंशत्तमोत्तर संवत्सरं वदन्ति ॥ 5 अन्न विषये प्रमाणम्‌ ॥ ब्राह्मस्य तु. क्गाहर्य यत्ममाणं समासत्ता-। एंकेक्शो युगे।नों 6 कपरी | स्तन्निंबोधत ॥ १ ॥ च्ताय्यांहुः सहस्ताणि-बषोणां हु कृत युगमू। तस्य तं।व- च्छती सम्ध्या सम्ध्यांशश्र तथाविंधः ॥२॥ (तरेपूं ससन्ध्येपु ससस्ध्याशेष च. त्रिप । एकापायेन वत्तन्ते सहस्ताशि शतानि च॥ रे ॥ यदेतत्‌ परसझ्या- 'ंप्रादावेव चतुंधुगप््‌ | एलद्ट्रादशेसहस दवानां युगमुच्यत ॥ ४.॥ दविकानों तादुजित चधप। पक मी जन




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now