यजुर्वेद भाष्य | Yajurved Bhashabhashya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
680
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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५४१ - घोड़प्ो3४पाया ॥
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की (प्रधोग ) घोर उंपद्वव से रहित ( आवाप क्ाशिती ) सत्य धर्मों को प्रश्नाशित करने-
हारी ( शिवा ) कल्पाणकारिणी ( तनूः ) देह वा विस्तृत उपदेशरूप नीति है ( तया )
उस ( शन्तमय ) भ्रत्यन्त छुखत प्राति कराने बाली ( तन्वा ) देह या विस्तृत उपदेश
की नीति से ( नः ) हम लोगों को आप ( प्रमि; चाकशीहि ) सव शोर से शीघ्र शिक्षा
क्षीजिये ॥ २॥
भांवाथः--शिक्षक लोग शिष्यों के लिये घर्मयुक्त नीति की शिक्षा दे भर पापों से
पृथक् करके कह्याणरुपी कर्मों के आचरण में नियुक्त करें ॥ ९॥
यामिषुमित्यस्य परमेष्ठी चा कुष्स ऋषिः । रुद्रो देवता । ।
विराडार््युप्रुप् छुल्द। | गान्धार; सर्वर ॥
ध्ंव राजपुरुषों को क्या करना चाहिये यहं बि० ॥
थामिषु गिरिशंस्त हस््तें विमष्परतवे । शिवां गिंरिश्र ता हु
मा हिं५छी। पुरुष जगत् ॥ १॥ '
पदाधे।--दे ( गिरिशन्त ) मेघ द्ाय खुंख पहुँचाने पाज्ते सेनापति जिस कारण तू
( प्रए्तवे ) फैकने के ढिये ( याम् ) मिस ( इपुम् ) वाण को ( ह॒स्ते ) हांथ में ( विभ
षि) धारण करता है इसलिये ( ताम् ) उस को ( शिवाम् ) महलक्वारी ( कुरु) कर हे
( गिरित्र ) विद्या के उपदेशको वा मेथों की रक्षा करने हारे राजपुदप तू ( पुरुषम् )
पुरुषाथेयुक्त महुष्यादि( जगत् ) सेसार को ( मा ) मत ( हिसी; ) मार] ३॥
भावाथः--राजपुदषों को चाहिये कि युद्धवियां को जान और शत्र घस्त्रों को '
धारण फरके मनुध्यादि भेष्ठ प्राणियों को कक्ेश न देवें वा न मारे किन्तु भज़ल्नरूप झाल- .
रण से सव की रक्ता करें ॥ ३॥ |
शिवेनेत्यस्य परमेष्ठी ऋषि: । रुद्रो देवता । निन्वदार्ष्य॑नु्प
छुन्दृः | गान्धार। स्व॒रः ॥
आअवब बच का छृत्य अगले मन्त्र में क० ॥
झवन बसा त्वां गिरिशाच्छा घंदामंसि। यथों ना सपीभ्ते
जगद्घच्मरणसुमंना अत ॥ ४ ॥ बे €ट*ँ
पदाथ;--हे ( गिरिश ) पर्वत वा मेधों में सोने चाल रोगनाशक पैचराज् तू ( छुम॑*
ना; ) ्रसज्नचित्त होकर शाप ( यथा ) जैसे ( न। )हमारा,( सर्वम् ) सव ( जगत )
मजुष्यादिः जन्म शोर स्थावर राज्य ( प्रयक्मम् ) क्षयी भ्रादि राजरोगों थे
रे
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