श्री पंचास्तिकाय संग्रह | Shri Panchastikay Sangrah
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हिंमतलाल जेठालाल शाह - Himmatalal Jethalal Shah
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ २३ ]
विषय
कर्मोकी विचित्रता अन्य द्वारा नहीं की जाती--तत्सम्वश्धी कथन
निशचयसे जीव और कर्मक्रो निज-निज रूपका ही कर्तापना होने पर भी, व्यवहारसे
जीवको कम द्वारा दिये गये फलका उपभोग विदोधको प्राप्त नहीं होता--
तत्सम्बन्धी कथन
कतृ त्व ओर भोवतृत्वकी व्याख्याका उपसंहार
कम संयुक्तपनेकी मुख्यतासे प्रभुत्व गुणका व्याख्यान ,
फर्म वियुक्तपनेकी मुख्यतासे श्रभुत्व ग्ुणका व्याख्यान
जीवके भेदो का कथन -
बद्ध जीवकोी कम निमित्तक पड़विध गमन ओर मुक्त जीवको स्वाभाविक ऐसा एक
ऊध्वंगमन
पुद्गल द्वव्यास्तिकायका व्यारूयान
पुद्गल द्रव्यके भेद
पुद्गल द्रव्यके भेदी का वन
स्कंघोंमें “पुदूयल ” ऐसा जो व्यवहार है.उसका समर्थन
परमाणुकी ध्याख्या ह
परमाणु भिन्त-भिन्न जातिके होनेका खण्डन
धाब्द पुद्गलस्कंधपर्याय होनेका कथन
परमाणुके एक प्रदेशीपनेका कथन
परमाणु द्रव्यमें गुएणा-पर्याय वर्ततेका कथन
स्व पुद्गल भेदी का उपसंहार
धमंद्रव्यास्तिकाय और अधमंद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान
घर्माध्तिकायका स्वरूप
घंमास्तिकायका ही शेप स्वरूप
घर्माध्तिकायके गति हेतुत्व सम्बन्धी हृष्टान्त
अधम[स्तिकायका स्वरूप
घमं जोर अधघमंके सदभावको सिद्धिके लिये हैतु ै
धर्मं और अधम गति गौर स्थितिके हेतु होने पर भी उनकी भत्यन्त उदावोनता
घर्म और अधमंके उदासीनपने सम्बन्धी हेतु
गाथा
६५
६
श्प
६६
७०
७१-७२
रे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...