श्री पंचास्तिकाय संग्रह | Shri Panchastikay Sangrah

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Shri Panchastikay Sangrah by हिमतलाल जेठालाल शाह - Himatlal Jethalal Shah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २३ ] विषय कर्मोकी विचित्रता अन्य द्वारा नहीं की जाती--तत्सम्वश्धी कथन निशचयसे जीव और कर्मक्रो निज-निज रूपका ही कर्तापना होने पर भी, व्यवहारसे जीवको कम द्वारा दिये गये फलका उपभोग विदोधको प्राप्त नहीं होता-- तत्सम्बन्धी कथन कतृ त्व ओर भोवतृत्वकी व्याख्याका उपसंहार कम संयुक्तपनेकी मुख्यतासे प्रभुत्व गुणका व्याख्यान , फर्म वियुक्तपनेकी मुख्यतासे श्रभुत्व ग्ुणका व्याख्यान जीवके भेदो का कथन - बद्ध जीवकोी कम निमित्तक पड़विध गमन ओर मुक्त जीवको स्वाभाविक ऐसा एक ऊध्वंगमन पुद्गल द्वव्यास्तिकायका व्यारूयान पुद्गल द्रव्यके भेद पुद्गल द्रव्यके भेदी का वन स्कंघोंमें “पुदूयल ” ऐसा जो व्यवहार है.उसका समर्थन परमाणुकी ध्याख्या ह परमाणु भिन्‍त-भिन्‍न जातिके होनेका खण्डन धाब्द पुद्गलस्कंधपर्याय होनेका कथन परमाणुके एक प्रदेशीपनेका कथन परमाणु द्रव्यमें गुएणा-पर्याय वर्ततेका कथन स्व पुद्गल भेदी का उपसंहार धमंद्रव्यास्तिकाय और अधमंद्रव्यास्तिकायका व्याख्यान घर्माध्तिकायका स्वरूप घंमास्तिकायका ही शेप स्वरूप घर्माध्तिकायके गति हेतुत्व सम्बन्धी हृष्टान्त अधम[स्तिकायका स्वरूप घमं जोर अधघमंके सदभावको सिद्धिके लिये हैतु ै धर्मं और अधम गति गौर स्थितिके हेतु होने पर भी उनकी भत्यन्त उदावोनता घर्म और अधमंके उदासीनपने सम्बन्धी हेतु गाथा ६५ ६ श्प ६६ ७० ७१-७२ रे




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