सर्व - वेदान्त - सिद्धान्त - सार - संग्रह | Sarv - Vedant - Siddhant - Saar - Sangrah
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
382
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सुख किमरत्यत्र विचाय॑माणे......
शह5पि वा योषिति वां पंदार्थ |
& 1» हे डर कर
मंयांत॑भान््धीक्ृत चक्षषो ये
त एंव मुहान्ति विविकशून्या! ॥ ४२ ॥
। अंन्वय और पद्मार्थ-( विचायंगाणे ) विचार करने पर ( अत्र ) इस लोक
में ( गहे ) घरमें (वां ) यां ( योपिति ) स्वीमें ( वा ) या ( पदार्थे ) अन्य वस्तु में
( किम ) क्या ( सुखम् ) सुंल॑ ( अस्ति ) है ( ये ) जो (मायातमों+न्पीकृतचत्तप:)
अविदारूुपअन्धकारमें दृष्टिहीन हैं ( ते ) वे ( विवेकेशुन्याः ) विचारहीन थुरुष
( एवं) ही ( मुश्नन्ति ) मोहको मराप्त होते हैं॥ ४२॥ ' पा प
( भमावंर्थ )-रिवार करके देखने पर इंस संसारमें घेर द्वारं और ख्री पूंते
आंदि पदायों से क्या कुछेंसुख मिलता 'है ! श्रयोत् विचारदष्टिमें कुछ मी सुख नहीं
मिलता, भांयामय अंन्धकारमें जिनके नेत्रोंसे कुछनहीं दीखता है ऐसे विवेकहीन
# अन्वय पदाये ओर भावार्थ संहित # (१६ ),
च्छ
पुरुष ही मोहबश इन विषयों में फँसते हैं ॥ 9२ ॥
अविचारितरमणीयं. |
सर्वेमदुम्बरफलोपम भोग्यमें | .
अज्ञानामुपभोग्ये न...
.. मुतज्त्ञानां भर्षेद्धितंद्रीग्यम ॥ ४३ क
5 अन््वंप और पदार्थ-( अविचारितस्मणीयम् ) विचार न करने परही रेमंणीय
मालूम होनेवाला ( उदुम्बरफलोपमम् ) उदुस्बरके फलकी समान ( सब ) संवे
( भोग्यम् ) भोगने योग्य पदार्थ ( अज्ञानाम् ) अज्ञांनियोंका ( उपभोग्यम् ) भोगे-
नेयोग्य ( भवेत् ) होगा ( तज्ज्ञानाम-तु ) उसके स्लरूप को जोन॑ने वालोंका तो
( तत् ) वह ( भोग्यम् ) उपभोग के योग्य ( न हि ) नहीं होता है ॥ ४३ ॥
( भ्रावार्थ )-जगत्के सबही भोगपदा्े,जवतक विंचांरं नहीं कियांजातो तब-
तक ऊंपरंसे बड़े ही रमणीय मालूम होते हैं, अंन्तमें उंदुम्बरके फैलकी संमान विरस |
“निकलते हैँ, इसकारण झअज्ानी पुरुष ही इन संब पदार्थोकों भोगंने योग्ये मानते हैँ,
प्ररन्तु जो इनके तत्वंकों जानते हैं वे ज्ञानी इनको तुछ सममते हैं ॥ ४३ ॥
शेत$पि तोये सुषिरं कुलीरों ।
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