सर्व - वेदान्त - सिद्धान्त - सार - संग्रह | Sarv - Vedant - Siddhant - Saar - Sangrah

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Sarv - Vedant - Siddhant - Saar - Sangrah by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अरससन>नन लत ज>+>म«म+मन+कन-म«+ं«म-ं-॑नननमनन+++- >>... ही कन्‍न्‍क ००० 5 अलकिन-ननसनन+- न» सुख किमरत्यत्र विचाय॑माणे...... शह5पि वा योषिति वां पंदार्थ | & 1» हे डर कर मंयांत॑भान्‍्धीक्ृत चक्षषो ये त एंव मुहान्ति विविकशून्या! ॥ ४२ ॥ । अंन्वय और पद्मार्थ-( विचायंगाणे ) विचार करने पर ( अत्र ) इस लोक में ( गहे ) घरमें (वां ) यां ( योपिति ) स्वीमें ( वा ) या ( पदार्थे ) अन्य वस्तु में ( किम ) क्या ( सुखम्‌ ) सुंल॑ ( अस्ति ) है ( ये ) जो (मायातमों+न्पीकृतचत्तप:) अविदारूुपअन्धकारमें दृष्टिहीन हैं ( ते ) वे ( विवेकेशुन्याः ) विचारहीन थुरुष ( एवं) ही ( मुश्नन्ति ) मोहको मराप्त होते हैं॥ ४२॥ ' पा प ( भमावंर्थ )-रिवार करके देखने पर इंस संसारमें घेर द्वारं और ख्री पूंते आंदि पदायों से क्या कुछेंसुख मिलता 'है ! श्रयोत्‌ विचारदष्टिमें कुछ मी सुख नहीं मिलता, भांयामय अंन्धकारमें जिनके नेत्रोंसे कुछनहीं दीखता है ऐसे विवेकहीन # अन्वय पदाये ओर भावार्थ संहित # (१६ ), च्छ पुरुष ही मोहबश इन विषयों में फँसते हैं ॥ 9२ ॥ अविचारितरमणीयं. | सर्वेमदुम्बरफलोपम भोग्यमें | . अज्ञानामुपभोग्ये न... .. मुतज्त्ञानां भर्षेद्धितंद्रीग्यम ॥ ४३ क 5 अन्‍्वंप और पदार्थ-( अविचारितस्मणीयम्‌ ) विचार न करने परही रेमंणीय मालूम होनेवाला ( उदुम्बरफलोपमम्‌ ) उदुस्बरके फलकी समान ( सब ) संवे ( भोग्यम्‌ ) भोगने योग्य पदार्थ ( अज्ञानाम्‌ ) अज्ञांनियोंका ( उपभोग्यम्‌ ) भोगे- नेयोग्य ( भवेत्‌ ) होगा ( तज्ज्ञानाम-तु ) उसके स्लरूप को जोन॑ने वालोंका तो ( तत्‌ ) वह ( भोग्यम्‌ ) उपभोग के योग्य ( न हि ) नहीं होता है ॥ ४३ ॥ ( भ्रावार्थ )-जगत्‌के सबही भोगपदा्े,जवतक विंचांरं नहीं कियांजातो तब- तक ऊंपरंसे बड़े ही रमणीय मालूम होते हैं, अंन्तमें उंदुम्बरके फैलकी संमान विरस | “निकलते हैँ, इसकारण झअज्ानी पुरुष ही इन संब पदार्थोकों भोगंने योग्ये मानते हैँ, प्ररन्तु जो इनके तत्वंकों जानते हैं वे ज्ञानी इनको तुछ सममते हैं ॥ ४३ ॥ शेत$पि तोये सुषिरं कुलीरों ।




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