अश्वमेघ | Ashwamegh

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Ashwamegh by लक्ष्मीकान्त वैष्णव - Laxmikant Vaishnav

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लक्ष्मीकान्त वैष्णव - Laxmikant Vaishnav

Add Infomation AboutLaxmikant Vaishnav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
इतना कहकर वह फिर बिहारी धर आ गया था कि वह विहारी की आदर्श कवि नहीं मानता । लगता है बिहारी सीधा आदमी था और सीघा आदमी कभी बच्छा कवि नहीं होता 1 प्रति पंकित इतनी आाकपक पारिश्रमिक की दरों पर घोडा-सा भी समझदार बांदमी राजा को रोज एक खंड-काव्य लिखकर सुनाता | दूसरी वात यह कि कवियों के लिए, फेरीवाले व्यवसायियों के लिए तथा पेशेवर स्त्रियों के लिए एक ठिए से घंघकर रहना घाटा पहुंचाता है । तीसरी वात यह कि किसी भी दरबार से बंध जाने पर उसी सुर में गाना पड़ता है, जिसमें कि दरवारी आर्केस्ट्रा बज रहा होता है । जैसे ही मआापकी कविता के बोल उनको घुन से मेल खाने बंद हुए, वे आपको घक्का मारकर बाहर कर देते हैं । इसके वाद वह अपने तिम॑जिले मकान की ओर बढ़ गया था। आदमी कवि सम्मेलनी जरूर था मगर काफी वातें कवि-मम्मेलन से हृठकर कर गया था। उसको इस वात मैं सर्वाधिक प्रभावित हुआ कि जीवन के किसी भी क्षेत्र मे मच पर आने के लिए प्रतिमा की कोई खास जरूरत नहीं होती और एक मंच पर स्थापित हो जाने के बाद आदमी को धरूजा निश्चित रूप से होने लगती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now