आश्वमेधिकमन्त्रमीमांसा | Ashvamedhik Mantra Mimansa
श्रेणी : हिंदू - Hinduism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.17 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९)
सम्यंकू सिद्ध है । वेद सिद्टान्ताबुसार जिस
सनुष्यन छापने परमधमेंकी रक्ता वा मापि करली उस
मे शानी 'सभी छुद प्राप्त कर किया, शौर जिसका धरे
'गया उसका जानों सभी नाश हो गया । इसके झनु-
'सार बेदने क्षत्रिय राज्ञाकों प्रजञाकषी रक्ता करना ही.
मुख्य कर्तव्य वतत्ताया है शर प्रनाकी'रक्षा नाम '
स्थिति वा पुष्टिका वा जीवनका मुख्य हेतु सूयेका स-
स्वन्ी शर्त चन्द्रमा है उस पन्द्रनाके जी वन हेतु रोग
दोष नाशक शष्चताशिकों प्राथना राजपत्नी सूरयात्सक
मगवानुसे झम् सूत्ति द्वारा प्रजा रक्षाथें करती है ॥
इसी प्रदारके वेदाशयकों सेकर सनजीने कहा हैकि-
सन्रियरपपरीधम: प्रजानामेवपालनमू।अ०9
क्षत्रिय राजाका परमधसं प्रजाकी रक्ा करना हो
हैं। इसी शसिप्रायसे शतपथ ब्रा४ सें ऊपर पशुवत्प- |.
राधीन तथा रक्षा करने योग्य प्रजाका हो नास गरम
लिखा है । उतर प्रभाका पालन पोषण करने वाला शंश
ही भ्रसृत फहाता है वह नि्ाभ वा संतोषादि घनेक
रुपोंसे संसारमें विद्यभान है। उस श्रयृतत झंशका श्र
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