आश्वमेधिकमन्त्रमीमांसा | Ashvamedhik Mantra Mimansa

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Ashvamedhik Mantra Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९) सम्यंकू सिद्ध है । वेद सिद्टान्ताबुसार जिस सनुष्यन छापने परमधमेंकी रक्ता वा मापि करली उस मे शानी 'सभी छुद प्राप्त कर किया, शौर जिसका धरे 'गया उसका जानों सभी नाश हो गया । इसके झनु- 'सार बेदने क्षत्रिय राज्ञाकों प्रजञाकषी रक्ता करना ही. मुख्य कर्तव्य वतत्ताया है शर प्रनाकी'रक्षा नाम ' स्थिति वा पुष्टिका वा जीवनका मुख्य हेतु सूयेका स- स्वन्ी शर्त चन्द्रमा है उस पन्द्रनाके जी वन हेतु रोग दोष नाशक शष्चताशिकों प्राथना राजपत्नी सूरयात्सक मगवानुसे झम् सूत्ति द्वारा प्रजा रक्षाथें करती है ॥ इसी प्रदारके वेदाशयकों सेकर सनजीने कहा हैकि- सन्रियरपपरीधम: प्रजानामेवपालनमू।अ०9 क्षत्रिय राजाका परमधसं प्रजाकी रक्ा करना हो हैं। इसी शसिप्रायसे शतपथ ब्रा४ सें ऊपर पशुवत्‌प- |. राधीन तथा रक्षा करने योग्य प्रजाका हो नास गरम लिखा है । उतर प्रभाका पालन पोषण करने वाला शंश ही भ्रसृत फहाता है वह नि्ाभ वा संतोषादि घनेक रुपोंसे संसारमें विद्यभान है। उस श्रयृतत झंशका श्र




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