संस्कृत - पाठ - माला भाग - 20 | Sanskrit - Paath - Mala Bhag - 20

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१५) ४ उदात्तके पीछे अनदात्त ज्ञागया, तो वह स्वरित होता है। ?” इस नियमरे अनुसार स्य स्वरित बन गया है। ५ “ देवस्‌ ! शब्दमें दे अनुदात्त हे ओर डलका चिह् उसके नीचे है, व डदात्त है, उदात्तके किये कोई चिह्न नहीं होता, यह पाठक जानते ही हैं। ६ “ ऋत्विजम ” इसमें “यज्ञस्थं ! के अनसारही समझना चाहिये। अर्थात्‌ ऋ अन॒दात्त ज भी अनदातत है, परंतु वह उदात्त त्वि के पीछे आनेसे स्वरित बन गया है । ७ होतोरम्‌ ” इस पदमें हो उदात्त है, ता अनुदात्त है, परंतु वह उदात्त के पश्चात्‌ आनेसे पृवेवत्‌ स्वरित बन गया है और उसके पीछेका र अनुदात्त है, परंतु यह अजुदात्तके पछे आनेसे इसको अजुदात्ततर कहा करे जाता है । ८ रतु-घधा-तंमस्‌ _ यह शब्द हे। इसमें रत्न ये दो अनदात्त हैं ! था उदात्त हैं । इस उदात्तक पश्चात्‌ अनुदात्त त आगया हुं, इसताडेय उदात्त के पीछे आनेवाछा अनुदात्त स्वरित होता है, इस नियसके अनुसार वह त स्व॒रित हुआ हैं ओर उसके पश्चातका म अनुदात्ततर हुआ, वास्तवमें यह अनदात्तही हैं । यहांतक पदोंके स्वरोंके विषयसें विवरण हुआ । यह विवरण पाठक वारंवार पढें कोर जबतक ठीक समझमें आ जावे तबतक सननपूवेक पढते जाये। ऐसा करनेसेही यह विषय ठीक समझमें भा सकता है। अब पुनः इढीकरणार्थ स्व॒रोंके वियम यहां देते हैं--- १ स्वरोच्चारमें कारूमर्यादाके न्‍्यून शोर अधिक होनेसे स्वरके “ हस्व, दीघे, प्छुत ? ये तीन भेद द्वोते हैं । २ स्वरके आधातके सेदसे उदात्त , अनुदात ओर स्व॒रित ये भेद होते हैं । उदात्तका आघात सुखके उच्च भागमें, अनुदात्तका नाचे भागमें और स्वरितका दोनों भागोंमें होता है ।




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