संस्कृत - पाठ - माला भाग - 20 | Sanskrit - Paath - Mala Bhag - 20
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
54
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५)
४ उदात्तके पीछे अनदात्त ज्ञागया, तो वह स्वरित होता है। ?” इस नियमरे
अनुसार स्य स्वरित बन गया है।
५ “ देवस् ! शब्दमें दे अनुदात्त हे ओर डलका चिह् उसके नीचे है,
व डदात्त है, उदात्तके किये कोई चिह्न नहीं होता, यह पाठक जानते
ही हैं।
६ “ ऋत्विजम ” इसमें “यज्ञस्थं ! के अनसारही समझना चाहिये।
अर्थात् ऋ अन॒दात्त ज भी अनदातत है, परंतु वह उदात्त त्वि के पीछे
आनेसे स्वरित बन गया है ।
७ होतोरम् ” इस पदमें हो उदात्त है, ता अनुदात्त है, परंतु वह उदात्त
के पश्चात् आनेसे पृवेवत् स्वरित बन गया है और उसके पीछेका र
अनुदात्त है, परंतु यह अजुदात्तके पछे आनेसे इसको अजुदात्ततर कहा
करे
जाता है ।
८ रतु-घधा-तंमस् _ यह शब्द हे। इसमें रत्न ये दो अनदात्त हैं !
था उदात्त हैं । इस उदात्तक पश्चात् अनुदात्त त आगया हुं, इसताडेय उदात्त
के पीछे आनेवाछा अनुदात्त स्वरित होता है, इस नियसके अनुसार वह
त स्व॒रित हुआ हैं ओर उसके पश्चातका म अनुदात्ततर हुआ, वास्तवमें यह
अनदात्तही हैं ।
यहांतक पदोंके स्वरोंके विषयसें विवरण हुआ । यह विवरण पाठक
वारंवार पढें कोर जबतक ठीक समझमें आ जावे तबतक सननपूवेक पढते
जाये। ऐसा करनेसेही यह विषय ठीक समझमें भा सकता है। अब पुनः
इढीकरणार्थ स्व॒रोंके वियम यहां देते हैं---
१ स्वरोच्चारमें कारूमर्यादाके न््यून शोर अधिक होनेसे स्वरके “ हस्व,
दीघे, प्छुत ? ये तीन भेद द्वोते हैं ।
२ स्वरके आधातके सेदसे उदात्त , अनुदात ओर स्व॒रित ये भेद होते हैं ।
उदात्तका आघात सुखके उच्च भागमें, अनुदात्तका नाचे भागमें और
स्वरितका दोनों भागोंमें होता है ।
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