शास्त्रवार्त्ता - समुच्चय और उसकी स्याद्वाद - कल्पलता का हिन्दी विवेचन | Shastravarta - Samucchay Aur Usaki Syadvad - Kalpalata Ka Hindi Vivechan

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Shastravarta - Samucchay Aur Usaki Syadvad - Kalpalata Ka Hindi Vivechan  by हरिभद्र सूरी - Haribhadra Suri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्था० क० टीका-हिन्दीविवेचन ] [ २३ पदादपि | यद्यते गम्यतेप्नेनेति पढंजव्यवहारः, ततः 'घटादिव्यवहारः स्वतन्त्र- पुरुपप्रयोज्यः, व्यवहारत्वात्‌ आधुनिककल्पितलिप्यादिव्यवहास्व॒त्‌! इत्यनुमानात्‌ , न च पूछ्व- पूर्वकुलालादिनैवाउन्यथासिद्धि!, प्रलयेन तद्िच्छेदात्‌ । व्यवहार प्रवत्तेंक रूप से इंश्वरसिद्धि] पद से भी ईश्वर का श्रनुमान होता है | पद शब्द की व्युत्पत्ति है 'पद्चते-गम्यते-ज्ञायते अनेनेति पदम्‌' । श्रर्थात्‌ जिस से पदार्थ ज्ञात हो उस का नाम है पद। इस व्युत्पत्ति के श्रमुसार पद शब्द का श्रर्थ है व्यवहार | झ्ौर व्यवहार का अर्थ है तद्‌ तद्‌ श्रर्थों मे परम्परा से प्रयुक्त होनेवाला तदु तद्‌ शब्द, जैसे घटरूप श्रर्थ मे सुदी्ध परपरा से प्रयुक्त होनेवाला घट शब्द एवं पट रूप अर्थ में सुदीर्ध परपरा से प्रयुकत होनेवाला पट शब्द श्रावि । इस व्यवहार के द्वारा जो ईश्वरानुमान अ्भिसत है उस का प्रयोग इस प्रकार होता है-“घट श्रादि श्र॒र्थों मे प्रयुक्त होनेवाला घट आदि शब्द- रूप व्यवहार किसी स्वतन्त्र पुरुष से प्रवरतित हुआ है वयोकि वह व्यवहार है । जो भी व्यवहार होता है वह ॒ सब किसी स्वतत्र पुरुष से प्रवरतित होता है। जैसे आधुनिक सनुष्यो द्वारा क-ख आदि बर्णो के लिये कल्पित लिपि | श्राशय यह है कि जैसे क-ख आदि वर्सों के लिये विशेष प्रकार की लिपि का व्यवहार फिसी आधुनिक स्वतन्न पुरुष के द्वारा प्रचारित होता है उस प्रकार घट श्रादि श्रर्थों मे घट श्रादि शब्दों का प्रयोगरूप व्यवहार भी किसी स्वतस्त्र पुरुष के द्वारा प्रवतित होना चाहिये। ओर चह पुरुष कोई आधुनिक नहीं हो सकता, क्योकि यह व्यवहार प्रनादिकाल से चल रहा है। अ्रत: इस श्रनादिकाल से प्रवृत्त व्यवहार के आरभ से जो पुरुष रहा हो वह ही उस का प्रवर्तंक हो सकता है। आधुनिक पुरुष तो घट शआ्लादि श्रर्थों मे घट श्रादि शब्द का प्रयोग अपने पूर्वेचर्ती पुरुषों से शीस्कर करते हैं । वह उस के स्वतनन्‍्त्र प्रव्तंक नहीं होते हैं ॥ उस का स्वतन्त्र प्रवर्तक वही कहा जायगा जिस को घट श्रादि श्रर्थों में घट श्रादि शब्द के प्रयोग करने की शिक्षा लेने की प्रपेक्षा नही होती किन्तु वह स्वय निर्धारित करता है कि घद आदि श्रर्थों को बताने के लिये घट श्रादि शब्दो का प्रयोग होना चाहिये । (कुलालादि से ही अ्रन्यथासिद्धि की आशका) इस संदर्भ मे यह झका हो सकती है कि-'जो जिस वस्तु को बनाता है वही इस वस्तु का नाम निर्धारित करता है । जैसे आ्ाधुनिक यन्त्रादि को बनानेवाला मनुष्य उस का कोई नास निश्चित करता है। उसी प्रकार घट आदि वस्तुओो को निर्माण करनेवाला मनुष्य ही उत के घट आ्रादि नामों को निर्धारित करता है इस प्रकार घट का निर्माण करनेवाला प्रथम कुम्हार ही घढठ व्यवहार का और पट का निर्माण करनेवाला प्रथम जुलाहा ही पट व्यवहार का घशूल प्रवर्तक है । इस प्रकार कुलाल तनन्‍्तुवाय इत्यादि श्राघुनिक मनुष्यों द्वारा ही घटपटादि व्यवहार का प्रवर्तत समव होने से उस के सूल प्रवर्तक के रूप से ईश्वर की कल्पना नहीं हो सकती! । किन्तु यह शका उचित नहीं है क्योकि शास्त्रों मे सृष्ठि के निर्माण और प्रलय दोनो की चर्चा हे । और अनुमान से भी सृष्टि का प्रलय के वाद होना तिद्ध है। जैसे वर्तमान स्थूलद्रव्यात्मक जगत्‌ रृश्यसन्तानशुन्ये उपादानकारण उत्पन्नम्‌ , स्थृलद्रव्यत्वातु प्रदीप्तज्वालावत ४ इस से यह सिद्ध होता है कि प्रलय फे बाद नई सष्ठि का निर्माण होता है। भ्रत. एवं उस मे घटपट आदि की प्रथम रचना आधुनिक कुलालादि से




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