उत्तराध्ययनसूत्रम् | Uttradhyyansutram

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Uttradhyyansutram by आत्माराम जी महाराज - Aatnaram Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुदिशाध्ययनम्‌ ] हिन्दीभापाटीऊासद्धितम्‌ [ ११शर परिसाग में निन तिन शुणों का अनुछान विटित हो उस उसम उनका आचरण करे । यहाँ पर इतना स्मरण रद्दे कि दिन के तिभाग की फल्पना का तात्पर्य यह है झि दुशिणायन और उत्तरायण म दिन की न्यूनाबिक्ता होती रहती है | अत उसके अलनुमार द्वी निभाग मे न्यूनाधिकता कर लेनी, जेसे कि--वत्तीस घडी के लिन--मान मे आठ घडी का चतुथ भाग होगा और अठाईस घडी के दिन-मान में सात घडी का चतुथारा होगा । अब निम्नद्धिस्नित गाथाओं में विभागानुमार गुणों के थारण करने के प्रिपय का उलेस करते हैं एि-.हऋह पढम॑ पोरिसि सज्ञायं, वीय॑ राण झियायई। तश्याए भिक्खायरियं, पुणों चउत्थीइ सज्माय॑ ॥१२॥ प्रथमाया पोरुष्या खाध्याय, द्वितीयाया ध्यान ध्यायेत्‌ । तृतीयाया . भिक्षाचर्या, पुनश्चतुर्थ्य खाध्यायम्‌ ॥१शा पटार्थोन्चय --पढम-प्रथम पोरिसि-पौस्पी में सज्काय स्वाध्याय करे बीय-दूसरी पौरुपी मे काण-ध्यान करे क्रियायह-ध्यावे-करे तहयाए-तीसरी मे मिक्खायरिय-मिक्षाचारी करे पुणो-फ्रि चउत्थीह-चौथी पौस्षी में सज्काय- स्वाध्याय करे । मूठाथ--प्रथम पहर (पौरुषी ) में स्वाध्याय करे, दूसरे म॑ ध्यान, तीसरे में मिचाचारी और चौथे पहर में फिर स्वाष्याय करे | टीशा--प्रस्तुत गाथा से साधु की दिनचर्या का वणन किया गया है, जैसे जि प्रथम पौस्पी--प्रथम पहर से, पॉचों अकार का स्पाध्याय करे, दूसरी मे स्वाध्याय क्यि हुए पत्ार्थ का चिन्तन अथवा आत्म ध्यान करे, तीसरी पौरुपी म भिक्षा को जाबे और चौदी में फिर म्थाध्याय करे । परठु यह समय का विभाग सामाय अथया स्थूल दृष्टि से किया गया है| और पिरेष रूप से तो प्रतिलेपना आदि का समय भी इमीम प्रथम पौस्पी में द्वी प्रहण जिया हुआ है। इसी प्रकार तीसरी पौरुषी में उचार भूमि मे ताना आदि ज़ियाय॑ गृद्दीत हैँ । तथा अपयाट मांग में भी यद्द समय व्ययस्थित नहीं रददेगा--सैसे कि रोगी वा बृद्ध साधु की सेवा युशुपा म




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