कच्चायन व्याकरण | Kacchayan Vyakaran

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Book Image : कच्चायन व्याकरण  - Kacchayan Vyakaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ भूमिका भारोपीय कुछ इन कुलो मे भारोपीय कुल विशेष महत्त्वपुर्ण है, क्योकि इस कुल की भाषाएँ दूसरी भाषाओं को श्रतीत से ही पराजित करती रही हैं श्रथवा उपयुक्त भ्रेन्य कुलो की भाषाशो पर श्रपती प्रमिट छाप छोडती रही हैं। इस समय तो यह प्रवृत्ति श्रत्यन्त बलवती है। भाषाविदो ने सर्वप्रथम भारोपीय कुल की ही कल्पना की भौर तब इसके परचात्‌ भाषा-कुल-विषयक सिद्धान्त की स्थापता हुई । इस सिद्धान्त का पुर्ण विकास पिछली शताब्दी में हुआ, यद्यपि सर विलियम जोन्स ने सस्क्ृत का श्रष्ययन करते समय सर्वप्रथम श्रठारहवी शर्ताब्दी में ही ऐता सोचा था । उन्हें सस्क्ृत, ग्रीक था लैटिन में साम्य के दर्शय हुए भौर यह भी प्रतीति हुईं कि जम॑न, मॉथिक तथा केल्तिक एवं प्राचीन फारसी भी इससे समानता रखती हैं। प्रतएवं वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि इनका उद्भव किसी एक ही भाषा से हुआ होगा» जो भ्रब लुप्त हो चुकी है। णोन्स की यह घारणा चमत्कारपुरँ, सत्य एवं वैज्ञानिक कल्पना थी भ्रौर श्रागे चलकर यह भाषा-कुलो के सिद्धान्त को भ्रतिपादित करने में पथ-प्रदर्शक हुईं | इसी समय श्राधुनिक तुलनात्मक भाषाचिज्ञान का भी जन्म हुश्रा। श्रत्तः भारत- यूरोपीय कुल की कल्पना तथा सुझ ने हो श्राघुनिक भाषाविज्ञान को प्रसृत किया । श्राज विश्व के कई भू-भाग जो भारोपीय भाषाओं से पुरा भ्रपरिचित थे, वे सभी भारोपीय भाषा के विकास एवं प्रसार के केन्द्र हो रहे हैं। भारत के श्राये परिवार की प्राचीन तथा भ्र्वाचीन भाषाश्रो की गणना इसी कुल के श्रन्तर्गत की जाती है । इस प्रकार सस्क्त, पालि, प्राकृत, श्रपञ्न/श एवं नव्य भारतीय श्रायंभाषाएँ सभी इसी से उद्गत हैं | श्रत इस कुल का सक्षेप मे परिचय देना अत्यन्त प्रावश्यक सा है । भारोपीय परिवार की प्राचीन भाषाप्रो के आधार पर ही विद्वानों मे मूल भारोपीय भाषा की कल्पना की है। इस भाषा को बोलमेवालो का मूल निवास- स्थान कहाँ था, इस सम्बन्ध में विद्वानों का मतभेद है, पर इतना निश्चित श्रवश्य है कि एक स्थान से ही भारोपीय मे भ्रपनी दिग्विजय यात्रा प्रारम्भ की । भारोपीय परिवार के भ्रन्तर्गंत निम्नलिखित भाषाएँ श्राती हैं-- केल्तिक, इतालिक, जर्म॑निक प्रथवा व्यूटनिक, ग्रीक, बाल्तोस्लाविक, श्राल्वनीय, प्राम॑ंनीय/ हची झथवा खत्ती, तुलारीय, भारत-ईरावी श्रथवा झ्ाय॑ । नीचे इनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है # ह. भा० णा० द्वि०, ४० ३२1




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